May 19, 2024

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10वीं पास मैकेनिक ने बनाई पानी से चलने वाली कार, मेक इन इंडिया के लिए विदेशी ऑफर ठुकराए…

बीसीआर न्यूज़ (नई दिल्ली): पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि क्लास रूम के सबसे पिछले बैंच पर बैठे छात्र में भी देश का एक बेहतरीन दिमाग मिल सकता है। शायद आपको ‘सलम डॉग मिलिनियर’ फिल्म में होटल में काम करने वाला वह बच्चा भी याद होगा, जिसने एक टीवी रियलिटी शो के दौरान अपनी जिंदगी के तजुर्बों के आधार पर प्रोग्राम के मेजबान द्वारा पूछे गए मुश्किल से मुश्किल सवालों का बड़ी आसानी से माकूल जवाब देकर करोड़पति बन जाता है। ये कहानी भले ही फिल्मी है, लेकिन हकीकत की जिंदगी में भी कई ऐसे किरदार होते हैं जो बिना किसी औपचारिक शिक्षा के कोई ऐसा बड़ा कारनामा कर दिखाते हैं, जिसे देखकर दुनिया दातों तले ऊंगली दबाने का मजबूर हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है कि ज्ञान का एकमात्र और अंतिम स्रोत सिर्फ मोटी-मोटी किताबें, बड़े-बड़े नामचीन शिक्षण संस्थाएं और उनमें पढ़ाने वाले विद्वान शिक्षक ही नहीं है। कई बार रोज-रोज के अनुभवों से सीखी और समझी गई बातें ज्ञान प्राप्ति के दूसरे तरीकों पर भारी पड़ जाती है। शिक्षाशास्त्री भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि व्यावहारिक ज्ञान अधिगम का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है।

मध्यप्रदेश के सागर जिले के रहने वाले 10वीं पास 54 वर्षीय एक कार मैकेनिक रईश महमूद मकरानी ने इस तथ्य को सच साबित कर दिया है। मकरानी के दो आविष्कारों ने उन्हें देश-प्रदेश सहित पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया है। पेट्रोल की बजाय पानी से चलने वाली कार और मोबाइल से कार ऑपरेट करने की उनकी तकनीक ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के होश उड़ा दिए हैं। सालों साल की मेहनत के बाद जो काम इंजीनियर्स नहीं कर पाए, उसे महज एक दसवीं पास मैकेनिक ने कर दिखाया है। इस कामयाबी के बाद कई देशों की नामी कंपनियां उनसे तकनीक बेचने या फिर उनके देश में आकर सेवा देने का आग्रह कर चुकी है। लेकिन मकरानी उनका ऑफर ठुकरा चुके हैं। वह अपनी तकनीक की इस्तेमाल प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम के तहत सिर्फ देशवासियों और देश के लिए करना चाहते हैं। उन्होंने अपने दोनों सफल आविष्कारों और उसके बाद के पूरी घटनाक्रमों पर योरस्टोरी से अपने अनुभव साझा किए।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 200 किमी के फासले पर स्थित सागर जिले के सदर बाजार में सालों से रईश महमूद मकरानी का परिवार रहता है। गाड़ियों की रिपयेरिंग और मेंटेनैंस का उनका पुश्तैनी कारोबार है। पिछले 50 सालों से हिन्द मोटर नाम से उनका गैराज चल रहा है, जो रईश मकरानी की जिंदगी का अटूट हिस्सा है। लगभग 35 साल पहले पढ़ाई के दौरान 12वीं में फेल करने के बाद मकरानी अपने पिता के कहने पर अपने इस पुश्तैनी गैराज का काम देखने लगे। अपने काम को वह इस समर्पण और ईमानदारी से करने लगे कि काम और मोटर गाड़ियों से उन्हें कब मोहब्बत हो गई, पता ही नही चला। नई-नई गाड़ियों के बारे में जानना और उसकी तकनीक को समझना, उनके शौक में शुमार हो गया। वह एक तजुर्बेकार डॉक्टर की तरह गाड़ियों की इंजन की आवाज को सुनकर और उसे देखकर बड़ी से बड़ी खराबी पकड़ चुटकियों में ठीक कर देते हैं। मकरानी के चार बेटे भी इसी कोराबार में उनका साथ देते हैं। मकरानी अपने पिता सईद मकरानी को अपना उस्ताद मानते हैं।

पेट्रोल नहीं पानी से चलने वाली कार बनाई

 हाल में मकरानी अपनी पानी से चलने वाली कार को लेकर देश और दुनिया में सुर्खियों में हैं। डिस्कवरी और बीबीसी से लेकर देश के प्रमुख न्यूज चैनलों और अखबारों में उनके इस आविष्कार का कवरेज हो चुका है। पानी से चलने वाली उनकी कार ट्रॉयल रन में पूरी तरह कामयाब साबित हुई है। सरकारी संस्थाओं से लेकर कई निजी संस्थानों ने उनकी कार को जांच-परख कर उसे भविष्य की कार घोषित कर दिया है, और रईश मकरानी को इस बात का प्रमाण-पत्र भी जारी कर दिया है। मकरानी ने योर स्टोरी को बताया,

“मैं इस कार को बनाने में वर्ष 2005 से जुटा हुआ था, लेकिन मुझे अपेक्षित सफलता वर्ष 2012 में मिली। इसके बाद मैं लगातार इस कार को अपग्रेड करने में जुटा रहा। मैंने अपना ये प्रयोग कार के 800 सीके इंजन पर किया है। हमने कार को पानी और कैल्सियम कार्बाईड से चलाने की कोशिश की। इन दोनों मिश्रण से एसिटिलीन नाम की गैस पैदा होती है, जिससे कार चलती है। पेट्रोल इंजन में फेरबदल के बाद एसिटिलीन से चलने वाला इंजन बनाया। बाद में कार में पीछे की तरफ एक सिलेंडर लगाया है। इसमें पानी और कैल्शियम कार्बाइड को मिलाकर एसिटिलीन पैदा किया जाता है। कुछ ही देर में एसिटिलीन बनते ही कार चलने लगती है।”

इस कार में चार लोग बैठ सकते हैं। इसे चलाने में प्रति दस किमी में लगभग 20 रुपए का खर्च आता है, जो वर्तमान पेट्रोल, डीजल, सीएनजी एलपीजी और एथनॉल से चलनी वाली कारों से बेहद सस्ती है। फॉर्मूले को पेटेंट कराने के लिए उन्होंने 2013 में इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑफ इंडिया के मुंबई स्थित ऑफिस में अर्जी भी लगाई थी, जहां से उनकी कार का पेटेंट मिल गया है।

चीन और दुबई से मिला कार निर्माण में सहयोग का ऑफर

मकरानी की इस कामयाबी के बाद उन्हें चीन और दुबई की वाहन निर्माता कंपनियों ने कार निर्माण में मदद करने का ऑफर दिया है। उन्होंने बताया कि चीन के सियाग शहर से इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाली कंपनी कोलियो के एमडी सुमलसन ने इस फॉर्मूले पर मिलकर काम करने का प्रस्ताव रखा है। कंपनी ने बड़े स्तर पर पानी और कार्बाइड से एसिटिलीन बनाकर इसे इलेक्ट्रिक एनर्जी लिक्विड फ्यूल में बदलकर देने पर बात की है। मकरानी 26 मई 2015 को चीन गए थे। लगभग 11 दिन तक वह इस सिलसिले में चीन में रहे। लेकिन उन्होंने चीनी कंपनी से भारत और खासकर सागर में कार बनाने और भारत में सबसे पहले इसे लांच करने की शर्त रखी थी। इसके बाद कंपनी ने उनसे इस दिशा में सोचने का समय मांगा था। रईस के अनुसार, इससे पहले 2013 में दुबई की इन्वेस्टमेंट कंपनी लस्टर ग्रुप ने भी उन्हें इस फॉर्मूले पर काम करने के लिए सहयोग करने का ऑफर दिया था। लेकिन भारत में रहकर फॉर्मूला तैयार और लॉन्च करने की बात को लेकर सहमति नहीं बन पाई थी।

गैस वेल्डिंग करते वक्त आया आइडिया

रईस मकरानी के मुताबिक,

“मुझे गैस वेल्डिंग करने के दौरान पानी से कार चलाने का आइडिया आया। गाड़ी के इंजन के पिस्टन को चलाने के लिए आग और करंट चाहिए। वेल्डिंग में भी कैल्शियम कार्बाइड और लिक्विड के मिलने से आग पैदा होती है। मैंने अपनी पेट्रोल कार के इंजन में हल्का फेरबदल किया और गाड़ी के फ्यूल टैंक में पेट्रोल के बजाय पानी और कैल्शियम कार्बाइड की पाइप लगा दी। इसके बाद गाड़ी को स्टार्ट करके देखा तो इंजन ऑन हो गया। शुरुआत में इसमें स्पीड को लेकर कई समस्याएं थी जिसे मैंने दूर कर दिया।”

मकरानी कहते हैं कि वह शुरू से ही कारों में कुछ अलग करने का सोचते थे। पेट्रोल, डीजल के बढ़ते दाम और उनके सिमित भंडारण की आशंकाओं के कारण भी वह पानी से कार चलाने के लिए प्रेरित हुए थे। हालांकि उनके इस आविष्कार के बाद कई लोगों ने सवाल उठाया है कि जब दुनिया में पीने के पानी का संकट है, तो ऐसे में पानी से चलने वाली कार समस्या का कोई समाधान नहीं करेगी बल्कि इससे जल संकट पैदा हो जाएगा। मकरानी इन सवालों के जवाब में कहते हैं कि इस तरह की चिंता फिजूल है,

“मेरी कार कोई पीने के पानी से नहीं चलेगी बल्कि वह इस्तेमाल की हुई वेस्टेज पानी से भी चल सकती है। नहाने, कपड़े धोने और यहां तक कि गंदे नाली के पानी से भी कार चल सकती है।”

अबतक 12 पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं मकरानी

रईश मकरानी अपनी इस कामयाबी के लिए अबतक 12 विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। पहली बार वर्ष 2013 में मध्यप्रदेश विज्ञान भवन ने उनके कामों का सराहा और इसके लिए उन्हें सम्मानित किया। विश्व पर्यावरण दिवस 2015 के मौके पर भी उन्हें विज्ञान मेले में उनके खोज के लिए सरकार ने उन्हें सम्मानित किया। इस तरह उनके नाम कुल एक दर्जन पुरस्कार हैं। लेकिन वह इन सम्मानों से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है,

“मुझे सच्ची खुशी तब मिलेगी जिस दिन उनकी कार देशवासियों के काम आएगी। मेक इन इंडिया के तहत सरकार इस कार को बनाएगी।”

मकरानी सरकारी उदासीनता के कारण थोड़े दु:खी भी हैं। वह कहते हैं कि देश में टैलेंट की कमी नहीं है, लेकिन सरकार उनका इस्तेमाल नहीं कर पाती है। देश के टैलेंटेड युवाओं को काम करने का मौका नहीं मिल पाता है। अंत में वह निराश होकर या तो अपना आइडिया किसी बाहरी मुल्क को बेच देते हैं या फिर विदेशों में जाकर काम करने लगते हैं। वह कहते हैं कि मुझे बहुत तकलीफ होती है जब अपने मुल्क को कोई इंसान दूसरे देश में जाकर कोई बड़ा काम करता है। मकरानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बड़े फैन हैं। वह उनकी मन की बात बड़े ध्यान से सुनते हैं। उन्हें उम्मीद हैं कि प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया से उनके सपनों को भी एक दिन पंख लगेगा।

मकरानी का एक दूसरा महत्वपूर्ण आविष्कार

मकरानी ने न सिर्फ पानी से चलने वाली कार बनाया है बल्कि उन्होंने वाहन चोरी की समस्या दूर करने के लिए भी एक अनूठा आविष्कार किया है। उन्होंने एक ऐसा डिवाईस और मोबाइल एप का ईजाद किया है, जिससे आप अपनी कार को अपने मोबाइल से बंद और स्टार्ट कर सकते हैं। हजारों किमी दूर से भी आप ये काम आसानी से कर सकते हैं। इसके अलावा आप अपनी कार में बैठे लोगों की पूरी बातचीत भी सुन सकते हैं। कार चोरी होने पर इस डिवाइस से न सिर्फ कार की लोकेशन का पता चलेगा बल्कि उसे बंद भी किया जा सकता है। इससे कार को ढूंढने और चोर को पकड़ने में मदद मिलेगी।

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