May 18, 2024

विनुविनीत त्यागी
(बी. सी. आर. न्यूज़)

आखिर ऐसा क्यों होता आ रहा हैं एक मुद्दत से हिन्दुस्तान के सबसे बड़े रंगमंच बॉलीवुड में कि, जब भी किसी भी फ़िल्म को देख लो कहीं ना कहीं हिन्दू देवी देवताओं व हिन्दुत्व का ही सरेआम मख़ौल मजाक बनाया गया हैं और वो भी एक हिन्दू बाहुल्य देश में ही हिंदुत्व और सनातन धर्म की अकसर सरेआम धज्जिया उड़ाई गई हैं अब तक। आखिर क्या ये ही सैकुलररिज्म हैं जिस देश मे सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखा जाता हो और सभी धर्मों सम्मान बराबर किया जाता हो, उसी देश के सर्वश्रेष्ठ धर्म को ही सरेआम उसी देश के रंगमंच पर नीलाम किया जाता रहा हैं। अगर देखा जाये तो और किसी धर्म के खिलाफ इसी रंगमंच पर कुछ भी हुआ तो उसे लेकर पूरे देश में सड़क से लेकर संसद तक हल्ला बोल हुआ हैं और खासकर इस्लाम धर्म को लेकर अगर किसी भी निर्माता निर्देशक ने किसी फिल्म में इस्लाम धर्म की हकीकत को जाहिर करने की कौशिश की तो उसका बॉलीवुड के रंगमंच से नामोनिशान तक मिट गया, और वैसे हिंदुस्तान को हिन्दू सनातन धर्म का सर्वश्रेष्ठ देश माना गया हैं इसी हिन्दू धर्म को इसी देश के रंगमंच पर अबतक तारतार करके रखा गया हैं. आखिर ऐसा क्यों, सैकुलररिज्म क्या इस देश मे हिन्दू व हिंदुत्व के ही खिलाफ हैं बहुत ही शर्मनाक हैं ये।

*बॉलीवुड के रंगमंच की गहनता से कुछ गौर करने लायक बातें *

1)गुनाहों का देवता ही क्यों होता है ख्वाजा या पीर क्यों नहीं???

2) हवस का पुजारी ही क्यों होता है मौलाना या मौलवी क्यों नहीं???

3) हर फ़िल्म में सुहागरात हिंदु की ही बताई जाती है मुसलमान की क्यों नहीं???

4) हर अपराध मंदिर में ही क्यों होता है मज़्जिद में क्यों नहीं???

5) धर्म के नाम पर लूटने वाला पंडित ही होता है कभी मौलवी नहीं???

6) फ़िल्म का मुख्य खलनायक अक्सर गले में रुद्राक्ष की माला या बड़ा सा तिलक लगाए हुए होता है मुस्लिम टोपी नहीं।

7) पुरानी फिल्मों के अधिकतर बलात्कारी अक्सर पुरी फ़िल्म में राम-राम या शिव-शिव तकिया क़लाम के रूप में प्रयोग करते थे कभी पीर-पैगंबर का नहीं।

8) शुद्ध हिंदी भाषा अधिकतर खलनायक भूमिका के लिए ही होती थी नायक अक्सर उर्दू या अंग्रेजी मिली हिंदी बोलता है ।

9) इतिहास गवाह है भारतीय सिनेमा के इतिहास से आज तक एक भी फ़िल्म ऐसी बनी हो जिसमें किसी चर्च के फादर को किसी ग़लत कामो में लिप्त या धर्मान्तरण को बढ़ावा देते हुए बताया हो।

10) ईश्वर में आस्था रखने वाले हर चरित्र की पुरी फ़िल्म के दौरान हँसी उड़ाई जाती है।

11) न्याय के देवता श्री यमराज को मुर्ख तो वहीं कर्म के देवता श्री चित्रगुप्त को चरित्रहीन रसिया के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है।

हिंदुत्व आज अचानक खतरे में नहीं आया है, ये तो उस विशाल बरगद के समान है जिसे खत्म करना आसान नहीं होता इसीलिए कई वर्षों से धीरे धीरे इसकी जड़ो को काटा जा रहा है, विचार करो जिस दिन ये पेड़ कट गया उस दिन घूट घूट के मर जाएगा हिन्दू के साथ साथ हिंदुत्व भी इस हिन्दुस्तान देश में।।

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