May 18, 2024

बीसीआर न्यूज़ (ब्यूरो नई दिल्ली): मुजफ्फरनगर 2013 के नाम से बनने वाली बाॅलीवुड फिल्म अब मुज़फ्फरनगर दी बर्निंग लव के नाम से पूरे भारतवर्ष मे अगले माह 17 नवंबर को रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म के लेखक और निर्माता मनोज कुमार मांडी का इस बारे मे कहना है कि में इस फिल्म के माध्यम से दो धर्मों के बीच मे फैली हुई गलतफहमियों को दूर करना चाहता हूं। मिली जानकारी के आधार पर लगभग डेढ़ वर्ष के अथक परिश्रम के पश्चात सन 2013 के दंगों पर आधारित फिल्म मुजफ्फरनगर द बर्निंग लव विगत दिनों सेंसर से पास होकर आगामी 17 नवंबर में पूरे भारत मे प्रदर्शन के लिये तैयार है। एक तरह से पेशे से बिजनसमेन मनोज कुमार मांडी के जेहन में जनपद मुजफ्फरनगर में हुए दंगे के बाद लोगों के बीच फैले मनमुटाव को फिर से आपसी प्यार में बदलने के लिये फिल्म बनाने का ख्याल आया।

दिलचस्प बात यह है कि मनोज कुमार मांडी इस फिल्म के निर्माता भी हैं और लेखक भी। उन्होंने उक्त फिल्म के किरदारों का चुनाव भी बड़े सटीक ढंग से किया है। फिल्म के कलाकारों मे मुख्य रूप से देव शर्मा, ऐश्वर्या धीमान, मुरसलीम कुरैशी, एकांश भारद्वाज और अनिल जार्ज आदि हैं। इस फ़िल्म के निर्देशक हरीश कुमार ने जन सहारा को बताया कि यह फ़िल्म विगत दिनों सन 2013 को जनपद मुजफ्फरनगर में घटित एक घटना पर आधारित है। यह हिंसक घटनाओ के बीच में दो दिलों के प्यार की भावनात्मक कहानी है जो सन 2013 के दंगे पर आधारित होते हुए भी दर्शकों को एक महत्वपूर्ण संदेश देती दिखाई देगी। इस फिल्म का निर्माण मोरना एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले हुआ है जबकि फिल्म में संगीत मनोज नयन, राहुल भट्ट और फराज अहमद का है। यह पूछे जाने पर कि आपको जनपद मुजफ्फरनगर के सन 2013 के दंगों पर फिल्म बनाने का ख्याल कैसे आया तो उनका कहना था कि मैं एक बिजनसमैन हूं और व्यापार के सिलसिले में अलग अलग प्रदेशों में जाता रहता हूं। मैने देखा कि लोगों में जनपद मुजफ्फरनगर के दंगे के बाद अलग अलग भावनाएं देखने को मिल रही है। अगर कोई मुस्लिम है तो वह यह सोच रहा है कि वहां पर हमारे लोगों के साथ बुरा बर्ताव हुआ और यदि हिंदु है तो वह भी यही सोच रहा है। बस इसी को ध्यान में रखते हुए मैने सोचा कि क्यों न इस पर एक फिल्म बनाई जाए और लोगों में एक दूसरे के प्रति जो गलतफहमियां फैली हुई हैं उन्हें दूर किया जाये क्योंकि आपस का इस तरह का मनमुटाव देश के लिये बेहद ही हानिकारक है।

इसको कैसे दूर किया जाये। बस यही सोचकर मुजफ्फरनगर दंगों पर फिल्म बनाने की सोची और फिर मुझे लगा भी कि फिल्म के माध्यम से ही ये काम किया जा सकता है। एक सवाल कि इस फिल्म को बनाने का मुख्य उद्देश्य क्या रहा है आपका तो उनका साफ कहना था कि इस फिल्म को बनाने का मेरा उद्देश्य लोगों को संदेश देना है। मैं इस फिल्म के माध्यम से न केवल इस उत्तर प्रदेश के लोगों को बताना चाहता हूं बल्कि दूसरे प्रदेश के लोगों को भी बताना चाहता हूं और दिखाना चाहता हूं कि सन 2013 में जनपद मुजफ्फरनगर मे जो दंगा हुआ। जैसा लोगों के बीच में अफवाहें फैली कि वहां हिंदु-मुस्लिम एक दूसरे के दुश्मन हो चले हैं। ऐसा कुछ नहीं है। बल्कि वहां के लोग एक दूसरे के साथ मिलकर खुशी-खुशी जीवन यापन कर रहे हैं। हां यह अलग बात है कि दंगे के दौरान कुछ हादसे हुये जिससे लोगों को विश्वास होने लगा कि वही सही है पर ऐसा नहीं है। मैं दंगे के वक्त वहीं पर था और मैने लोगों में आपसी भाईचारा देखा। इस फिल्म के माध्यम से मैं उसी भाईचारे को दिखाना चाहता हूं उसी आपसी प्यार को दिखाना चाहता हूं। जब मैने फिल्म बनाने के बारे में सोचा तो यह भी ख्याल आया कि दर्शकों को हम कैसे अपनी तरफ खीचेंगे। फिर मैने प्यार की बात की लेकिन संदेश को ध्यान में रखते हुए। सेंसर बोर्ड ने फिल्म के किसी भी सीन या संवाद को लेकर कोर्ई आपत्ति नहीं जताई। हां टाईटल को लेकर उन्होंने एक सुझाव दिया था कि हो सकता है कि इससे आपको कोई परेशानी हो सकती है। इसलिये हमने टाईटल को उनके सुझाव पर बदल दिया और किसी प्रकार की कोई परेशानी हमें बोर्ड की तरफ से नहीं हुई। फिल्म निर्देशक हरीश कुमार का विजन बिलकुल साफ है कि किस चीज को कैसे करना है यह उन्हें बहुत अच्छी तरह से आता है।

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