बीसीआर न्यूज़ (सुधीर सलूजा): शिष्य का गुरू के प्रति सम्मान और गुरु का शिष्यों के लिए समर्पण में कमी आने से गुरू और शिष्य के सम्बन्धों में बदलाव आ रहा है। ईश्वर में आस्था ही जीवन का आधार है। हमारे समाज और धर्म में गुरु का स्थान ईश्वर से ऊपर माना गया है। कबीर दास जी कहते हैं –
गुरू गोबिंद दोऊ खड़े ,काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरू आपने ,गोबिंद दियो मिलाये।
कबीर दास जी ने गुरू के स्थान का वर्णन किया है ,वे कहते हैं कि जब गुरू और स्वयं ईश्वर दोनों एक साथ सामने खड़े हो तो हमें पहले किसका अभिवादन करना चाहिए अर्थात दोनों में से किसे पहला स्थान दें? इस पर कबीर दास जी कहते है कि जिस गुरू ने ईश्वर का महत्व बताया है ,जिसने ईश्वर से मिलाया है वही श्रेष्ठ है। इसलिए गुरू का दर्जा ईश्वर से ऊपर माना गया है। हमें यह भी बताया गया है कि ठहरा हुआ पांनी कुछ दिनों में दुर्गंध देने लगता है और बहता हुआ पांनी हमेशा साफ़ रहता है। बहता हुआ पांनी कई लोगों के काम आता है ,अर्थात हमें दान देना चाहिए। अथर्ववेद में भी दान की महिमा इस प्रकार की गई है कि सौ हाथों से इकठ्ठा करो और हज़ारों हाथों से बांटो। सभी धर्मों में अपनी कमाई का कम से कम दसवां हिस्सा तो दान करने की बात कही गई है. जिसे दसवंत भी कहा जाता है। दान का एक नियम यह भी है कि दान लेने वाले के स्वाभिमान को ठेस न पहुंचे ,इसलिए गुप्त दान की महिमा की गई है। कुछ ग्रंथ तो कहते हैं कि यदि तुम दाएं हाथ से दान देते हो तो बाएं हाथ को भी न पता चले। परन्तु आज समय बदल गया है ,लोग धर्मशालाओं और धार्मिक स्थलों पर पंखे लगवाते है या कमरे बनवाते हैं तो सबसे पहले अपना नाम लिखवाते हैं। आज कुछ गुरुजनों की भी स्थिति बदल गई है ,भक्त अपने गुरू जी के आश्रम में दान की राशि देते हैं और गुरू जी दान की राशि से अपना व्यवसाय चला रहे हैं।
आज बड़ी संख्या में गुरुजनों में अपने भक्तों को अपना प्रोडक्ट बेचने की होड़ लगी है। पिछले कुछ समय में कई गुरूजन संदिग्ध गतिविधियों में भी शामिल पाए गए और उन्हें जेल जाना पड़ा है। भक्त को उस समय कितनी मानसिक पीड़ा होती है जब उसे अपने गुरू कि गतिविधि का मालूम होता है। भक्त की जीवन भर की भक्ति व्यर्थ हो जाती है ,उसके जीवन में अँधेरा छा जाता है ,वह अपने आप को ठगा महसूस करता है। उसकी वर्षों की भक्ति का अर्थ बदल जाता है क्योंकि वह उस गुरू की भक्ति सहारे ही अपने जीवन रुपी नांव को पार लगाने की कल्पना कर चुका होता है। आज आवश्यकता है कि गुरू दीक्षा लेने से पहले अच्छी तरह जाँच पड़ताल कर लें और धर्मगुरुओं से भी समाज यह उम्मीद करता है कि वह असमाजिक तत्वों पर कड़ी नज़र रखें और धर्म की रक्षा करें ,तांकि भक्तजनों का गुरुजनों पर विश्वास बना रहे। कबीर दास जी कहते हैं –
साधू ऐसा चाहिए ,जैसा सूप सुभाय,
सार सार को गहि रहै,थोथा देई उड़ाय।
अर्थात इस संसार में ऐसे सज्जनों,गुरुओं की जरूरत है जैसे अनाज साफ करने वाला सूप होता है जो सार्थक को बचा लेता है और निर्रथक को उड़ा देता हैं ,क्योंकि धर्म के प्रति आस्था ही हमारे जीवन का आधार है