November 15, 2024
Ram Mandir in Ayodhya

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31 साल पहले लिखी थी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की पटकथा

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बीसीआर न्यूज़ (लखनऊ): इतिहास में आंदोलन बहुत होते हैं लेकिन बहुत कम होते हैं जो इतिहास बना दें। इतिहास में हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो जाएं। राम मंदिर की मांग देश में दशकों से हो रही थी। कानूनी लड़ाइयां लड़ी जा रही थीं, लेकिन हिंदू धर्म गुरू एकजुट हुए करीब 31 साल पहले, जब दिल्ली में धर्मसंसद का आयोजन हुआ। इसी धर्म संसद में ये तय हुआ कि श्रीराम जन्मभूमि पर लगे ताले को खुलवाने के लिए देश में बड़ा आंदोलन छेड़ा जाएगा।

धर्मसंसद में हुए इस फैसले के बाद पूरे देश में जन-जागरण अभियान छेड़ा गया। गावों-कस्बों से होती हुई यात्रा अक्टूबर में अयोध्या पहुंची। लाखों लोगों ने जन्मभूमि का ताला खोलो का आह्वान करते हुए लखनऊ में होने वाली धर्मसभा की ओर रुख किया। लेकिन इसी दौरान इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और सभी कार्यक्रमों को रोकना पड़ा। इसके एक साल बाद अक्टूबर 1985 को कर्नाटक में दूसरी धर्मसंसद बैठी।

इस धर्मसंसद में सरकार को सीधी चेतावनी दी गई कि अगर 1986 की महाशिवरात्रि तक ताला नहीं खुला तो और बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा। राम मंदिर निर्माण के लिए लोगों को जोड़ने के लिए इस दौरान रथयात्राएं होती रहीं, जन-जागरण होता रहा। इसी बीच 1 फरवरी, 1986 को फैजाबाद कोर्ट ने जन्मभूमि पर लगा ताला खोलने का आदेश दे दिया। इसी दिन शाम तक ताला तोड़ दिया गया और भक्तों ने रामलला के दर्शन करने शुरू कर दिए। ताला खोलने के खिलाफ सभी अपीलें भी हाईकोर्ट ने अक्टूबर, 1989 तक रद्द कर दीं।

कोर्ट में याचिकाएं रद्द होने के बाद श्रीराम जन्म भूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण को लेकर चर्चा शुरू हुई। मंदिर के कई डिजाइन बनाए गए। अहमदाबाद के एक आर्किटेक्ट का डिजाइन मंजूर कर लिया गया। ये भी तय किया गया कि मंदिर के निर्माण में कहीं पर भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। इसके बाद बारी आई मंदिर बनाने के लिए पैसे के इंतजाम की। जरूरी पैसे जुटाने के लिए 6 करोड़ लोगों से संपर्क किया गया। देश के पौने तीन लाख गावों में पूजा होने के बाद मंदिर के लिए रामशिलाएं अयोध्या पहुंचीं।

केंद्र और राज्य सरकार की सहमति से 10 नवंबर, 1989 को राममंदिर का शिलान्यास हुआ। इसके अगले साल 24 जून, 1990 में हरिद्वार में मार्गदर्शक मंडल की बैठक हुई। बैठक में तय किया गया कि 30 अक्टूबर, 1990 को मंदिर बनाने के लिए कारसेवा शुरू की जाएगी। लेकिन तब तक मंदिर आंदोलन का सियासी विरोध भी चरम पर पहुंच गया था।

तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ऐलान कर दिया कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा। सरकार की इस धमकी की परवाह ना करते हुए कारसेवकों का जत्था अयोध्या के निकल पड़ा। अयोध्या को सील कर दिया गया। हजारों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई। लेकिन मुलायम सरकार की सारी तैयारी धरी की धरी रह गई। 30 अक्टूबर को कारसेवकों ने बाबरी ढांचे पर चढ़कर उसके गुंबदों पर भगवा झंडा लहरा दिया।

कारसेवकों की इस कामयाबी से सरकार बौखलाई हुई थी। 2 नवंबर को जब एक बार फिर कारसेवा का ऐलान हुआ तो पुलिस ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी। इस फायरिंग की गूंज अगले कुछ महीनों तक देश के कोने-कोने में सुनाई दी। कारसेवकों पर फायरिंग के खिलाफ 4 अप्रैल, 1991 को दिल्ली के बोटक्लब पर एक बड़ी रैली का आयोजन किया गया। कहा जाता है कि आजादी के बाद ये बोट क्लब पर हुई सबसे बड़ी रैली थी। इस रैली में अशोक सिंघल ने फिर हुंकार भरी की मंदिर वहीं बनाएंगे।

इसी रैली के दौरान खबर आई थी कि मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दे दिया है। केंद्र में वीपी सिंह की सरकार पहले ही गिर चुकी थी। इसके बाद तत्कालीन प्रदानमंत्री चंद्रशेखर की कमान में केंद्र की सरकार ने दोनों पक्षों के बीच बातचीत की कोशिश शुरू की। सबूतों की पड़ताल शुरू हुई। तब तक उत्तर प्रदेश की सत्ता में कल्याण सिंह सरकार काबिज हो चुकी थी।

अक्टूबर 1991 में कल्याण सरकार ने विवादित ढांचे को छोड़कर उसके चारों और का इलाका अधिग्रहित कर लिया। इसके बाद 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में पांचवी धर्मसंसद का आयोजन हुआ। इस धर्म संसद में तय किया गया कि 6 दिसंबर को मंदिर निर्माण के लिए एक बार फिर कारसेवा शुरू की जाएगी। नवंबर के आखिरी हफ्ते में मंदिर आंदोलन से जुड़े तमाम नेता चाहें वो अटल बिहारी वाजपेयी हों, लाल कृष्ण आडवाणी हों, अशोक सिंघल हों, सभी अयोध्या पहुंच गए थे।

अदालती लड़ाई अपनी तरफ जारी थी। हिंदू नेताओं ने कोर्ट से अपील की कि वो अपना फैसला 6 दिसंबर से पहले सुना दे, लेकिन कोर्ट ने फैसले की तारीख 11 दिसंबर तय की। लेकिन तब तक कारसेवकों के सब्र का बांध टूट गया था। दिसंबर को तय समय पर कारसेवा शुरू हुई और शाम होते-होते तीन गुंबदों वाला ढांचा गिरा दिया गया। राम जन्मभूमि आंदोलन में ये सबसे बड़ी तारीख थी। 6 दिसंबर को ढांचा गिराए जाने के बाद देश में दंगे हुए। सरकारें बर्खास्त हुईं। चुनाव लड़े गए। चुनाव जीते गए। चुनाव हारे गए। अब अयोध्या में शीला पूजन के साथ ये आंदोलन दूसरे चरण में जाता दिख रहा है।

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