समीक्षा हिंदी मूवी : ज़िद्द
समीक्षक : अजय शास्त्री
प्रमुख कलाकार: करणवीर शर्मा, मनारा, श्रद्धा दास
निर्देशक: विवेक अग्निहोत्री
संगीतकार: शारिब-तोषी।
स्टार: डेढ़
बीसीआर (मुंबई) जेम्स क्रिस्प की ‘द गुड नेबर’ पर आधारित यह फिल्म हिंदी में सायकोलॉजिकल थ्रिलर के तौर पर आरंभ हुई थी, जो रिलीज होते-होते ऐरोटिक थ्रिलर बन गई। सस्पेंस, थ्रिलर, रोमांस और सेक्स को मसालों की तरह इस्तेमाल करती ‘जिद’ एक जर्मन फिल्म की रीमेक है। फिल्म में एक हीरो और दो हीरोइनों की अंतरंगता के हॉट सीन है। ऐसा लगता है कि फिल्म का मकसद उन दर्शकों को संतुष्ट करना रहा है, जो कामुक और यौन दृश्यों के लिए ही फिल्म देखते हैं।
रोहन एक अखबार का क्राइम रिपोर्टर है। उसकी जिंदगी में माया और प्रिया आती हैं। इनमें एक से वह प्रेम करता है और दूसरी उस पर आसक्त है। इस प्रेमत्रिकोण में हत्या, प्रॉपर्टी और सस्पेंस का प्रपंच है। लेखक-निर्देशक ने इस प्रपंच के लिए गोवा के खूबसूरत लोकेशन का इस्तेमाल किया है। बारिश में भीगा गोवा फिल्म की कहानी के रहस्य और नमी को बढ़ाता है। कैमरामैन ने लोकेशन का सुंदर उपयोग किया है। अंतरंग दृश्यों में अंगों का प्रदर्शन है, लेकिन उसे अश्लील नहीं होने दिया गया है। एक शालीनता बरती गई है, फिर भी दृश्यों के दबाव में सब कुछ ढका नहीं रह पाता।
यह मनारा और करणवीर शर्मा की पहली फिल्म है। पहली फिल्म के लिहाज से दोनों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। करण में एक ठहराव है। मनारा इस फिल्म में अनगढ़ लगी हैं। कुछ दृश्यों में वे संलग्न दिखती हैं तो कुछ दृश्यों में वह मिसफिट हो जाती हैं। निर्माता-निर्देशक ने उन्हें प्रतिभा के साथ अंग प्रदर्शन के भरपूर मौके दिए हैं। श्रद्धा दास भी अपेक्षाकृत नई अभिनेत्री हैं। इन तीनों की वजह से फिल्म में ताजगी है। वह ताजगी अगर कथ्य में भी उतर पाती तो फिल्म अधिक प्रभावशाली हो जाती।
लेखक-निर्देशक ने सस्पेंस रचा है। वे उसे अंत तक निभा भी ले जाते हैं। बार-बार शक की सुई एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे किरदारों की ओर घूमती रहती है। इस रहस्य कथा को सुनाने और दिखाने का तरीका पुराना है। फिल्म के गीत-संगीत में मधुरता और शब्दों की भावुकता है। गीतकार शकील आजमी और तोषी-शारिब की संगत प्रभावशाली है।
अवधि: 130 मिनट