सेबी की मनमानी की सजा काट रहा सहारा
– समूह को किया जा रहा दोहरा भुगतान करने के लिए मजबूर
– इस मामले में जनता को भ्रमित कर रहे हैं मीडिया के कुछ लोग
बीसीआर (नई दिल्ली) सहारा की दो कंपनियों द्वारा ओएफसीडी योजना के तहत जुटाए गए 25780 करोड़ रुपए के मामले में समूह को दोहरा भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हकीकत यह है कि इतनी बड़ी धनराशि का दोहरा भुगतान देश में सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक एसबीआई भी नहीं कर पाएगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि जानकारी के अभाव में मीडिया के कुछ लोग जनता के बीच भ्रम फैला रहे हैं कि सहारा समूह के चेयरमैन सहाराश्री सुब्रत रॉय सहारा निवेशकों को 24000 करोड़ रुपए का भुगतान न करने के कारण जेल में हैं जबकि इसमें से 95 फीसद रकम का भुगतान किया जा चुका है। कुल मिलाकर सेबी के मनमाने रवैए की सजा पूरे सहारा समूह को भुगतनी पड़ रही है।
सचाई यह है कि सहारा समूह की दो कंपनियों सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कारपोरेशन लि. और सहारा इंडिया हाउसिंग कारपोरेशन लि. ने ओएफसीडी (आप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर) योजना के तहत जो पूंजी जुटाई थी वर्ष 2012 तक इसकी देनदारियों की लगभग 95 रकम का पुनभरुगतान कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के पास अप्रैल, 2012 तक की देनदारी की जानकारी थी और 14 जून, 2012 की पेशी के बाद शीर्ष न्यायालय का निर्णय 31 अगस्त, 2012 तक सुरक्षित रख लिया गया। इसलिए पूर्व प्रभावी आदेश के साथ सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को 25780 करोड़ रुपए की संपूर्ण राशि ब्याज समेत जमा करने का कहा। इस आदेश का पालन न करने के कारण ही सहारा समूह के चेयरमैन सहाराश्री सुब्रत रॉय कस्टडी में हैं। इसमें जनता का पैसा न लौटाने का कोई मामला नहीं है।
जाहिर है मीडिया से जुड़े कुछ लोग अनर्गल तथ्य पेश करके समूह की साख को धूमिल करने की कोशिश कर रहे हैं। विगत करीब ढाई साल में पूंजी बाजार नियामक सेबी निवेशकों को मात्र दो करोड़ रुपए का ही भुगतान कर पाया है। सेबी के तीन बार राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञापन जारी करने के बाद निवेशकों की ओर से लगभग 20 करोड़ रुपए के पुनभरुगतान की ही मांग हुई है। यदि तीन करोड़ निवेशकों की 20,000 करोड़ रुपए की देनदारी होती तो देशभर में अराजकता, आत्महत्या और खून खराबे के हालात पैदा हो गए होते। वास्तविकता यह है कि इस मामले में अभी तक समूह के खिलाफ कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई है। हालांकि इस स्थिति में लोग यह कह सकते हैं कि निवेशकों के समस्त खाते फर्जी होंगे लेकिन सहारा का दावा है कि एक भी खाता फर्जी नहीं है। इस मामले की सचाई तो जांच के बाद ही सामने आ पाएगी लेकिन सेबी इससे क्यों पीछे हट रहा है यह एक और जांच का विषय है।
सेबी को सहारा अब तक 12000 करोड़ रुपए (ब्याज सहित) भुगतान कर चुका है। जब तक सहाराश्री कस्टडी से बाहर निकल कर आएंगे तब तक समूह का 18,000 करोड़ रुपए सेबी के पास ही रहेगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जांच के बाद पूरी धनराशि बैंक ब्याज के साथ सहारा के पास ही वापस आनी है। सुप्रीम कोर्ट ने करीब ढाई साल पहले सेबी को इस मामले की जांच का आदेश दिया था लेकिन यह काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। जांच के मामले में शीर्ष न्यायालय के आदेश की अवहेलना के पीछे की वजह क्या है, इस बारे में सेबी को ही बेहतर मालूम होगा लेकिन नियामक की मनमानी आज सबके सामने है। यदि यह जांच समय रहते हो गई होती तो समूह के चेयरमैन कस्टडी में कतई नहीं होते। कुल मिलाकर इस मामले में सेबी ने निवेशकों के हितों की रक्षा के बजाय दादागीरी भरा रुख अख्तियार किया है।
ओएफसीडी के जरिए पूंजी जुटाने का यह कोई पहला अवसर नहीं है। सहारा वर्ष 2003 से कंपनी कार्य मंत्रालय के तहत आने वाले रजिस्ट्रार आफ कंपनीज (आरओसी) की लिखित अनुमति लेकर ओएफसीडी के इश्यू जारी करता रहा है। यह पूंजी संग्रह कंपनीज एक्ट 1956 के क्लाज 60(बी)9 और उसके साथ 56ए(सी) के तहत किया गया। यही नहीं, 21 अप्रैल, 2012 को सेबी ने कंपनी कार्य मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक को लिखा कि सहारा की दो कंपनियां सेबी के कार्य क्षेत्र के अंतर्गत नहीं हैं। कुछ माह बाद तत्कालीन वित्त राज्यमंत्री ने सेबी के जवाब के आधार पर संसद में कहा कि निजी नियोजन के तहत हासिल ओएफसीडी कंपनी कार्य मंत्रालय द्वारा प्रशासित होंगी, सेबी के द्वारा नहीं। हैरानी की बात यह है कि इसी सेबी ने कुछ माह बाद कोर्ट में शपथ पत्र दिया कि सहारा कि ये दोनों कंपनियां सेबी के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आती हैं।
इतना ही नहीं, तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली, पूर्व मुख्य न्यायाधीश एएम अहमदी, वीएन खरे, पूर्व सालीसिटर जनरल मोहन परासरन और पूर्व एडिशनल सालीसिटर जनरल डा. अशोक निगम एव अन्य कई कानून विशेषज्ञों ने स्पष्ट राय जाहिर करते हुए कहा है इस मामले में सहारा सही है और सेबी गलत है। हैरानी की बात यह है कि सितम्बर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सिक्योरिटी के लिए नकद राशि के बजाय भूसंपत्तियों की मांग की लेकिन चार मार्च 2014 को समूह के चेयरमैन एवं दो निदेशकों की गिरफ्तारी के बाद अप्रत्याशित रूप से 28 मार्च, 2014 को शीर्ष न्यायालय ने अपने आधार को भूसंपत्ति से बदल कर नकद राशि एवं बैंक गारंटी कर दिया। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो 10,000 करोड़ रुपए की जमानत राशि अभी तक पूरे वि में सर्वाधिक है। गिनीज बुक आफ र्वल्ड रिकार्ड में अब तक की सबसे अधिक जमानत राशि 600 करोड़ रुपए थी।
जानकारों के अनुसार इस मामले में सहाराश्री को कस्टडी में लिया जाना किसी भी सूरत में उचित नहीं हैं। समूह की जिन दो कंपनियों ने ओएफसीडी जारी किए हैं सहाराश्री उनमें हमेशा एक शेयरहोल्डर के रूप में थे। इस मामले की तारीख पर उनकी हिस्सेदारी एक फीसद से भी कम थी। इस समय भी यही स्थिति है। सहाराश्री इन दोनों कंपनियों में से किसी के कभी डायरेक्टर नहीं रहे। खास बात यह है कि उनके विरुद्ध किसी भी प्रकार का कोई चार्ज नहीं है। उनके या कंपनी के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं है। ऐसे में सहारा को सिर्फ और सिर्फ सेबी की कारस्तानी की सजा झेलनी पड़ रही है।