महाराष्ट्रा के निडर शेर हिन्दू ह्रदय सम्राट ( बाला साहेब ठाकरे) की अस्मिता को दो कौड़ी की सत्ता मोह में पलीता लगा डाला, उद्धव ठाकरे, व संजय राउत की सोच ने.
24 जुलाई 2020
विनुविनीत त्यागी
(बी. सी. आर. न्यूज़)
बता दें कि, महाराष्ट्र की घटिया राजनीति के चलते सत्ता मोह में मिट्टी में मिला पलीता लगा दिया हिंदुह्र्दय सम्राठ बाला साहेब ठाकरे द्वारा दी गयी हिंदूवादी विचारधारा को पुत्र उद्धव ठाकरे ने- एक नाकारा साबित हुए एक असफल मुख्यमंत्री.
ये भी कहना गलत नही होगा कि महाराष्ट्र की वर्त्तमान राजनीतिक स्थिति में शरद पवार एक मंजे हुवे संचालक की भूमिका में है।
●उन्हें गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव तो है ही , साथ ही तीन अलग अलग विचारधारा वाली पार्टियों को एक मंच पर लाने का श्रेय भी उन्ही को दिया जाता है।
●शरद पवार चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके , साथ ही भारत के रक्षा मंत्री व कृषि मंत्री रह चुके है।
उनपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे लेकिन आरोप साबित नहीं हो पाए।
●अब बात करते है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की, मौजूदा हालात देखकर यही दिखाई देता है कि इनसे कमजोर मुख्यमंत्री शायद ही कोई हो फिर चाहे वो कोरोना काल की स्थिति को संभालने की बात हो ,चाहे शिवसेना जैसी कट्टर हिन्दू वादी पार्टी की विचारधारा को पूरी तरह ताक पर रख दिया हो, उद्धव ठाकरे पूरी तरह एक असफ़ल मुख्यमंत्री साबित हो रहे है।
●बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना की नींव 1966 ई. में रखी थी।
वे महाराष्ट्र में एक कद्दावर नेता के रूप में उभरे।
●छाती ठोककर हिंदुत्व का खुलकर समर्थन करनेवाले, बाला साहेब ठाकरे के एक इशारे पर पूरी मुम्बई बंद हो जाती थी।
बाला साहेब मुम्बई की राजनीति के उन चेहरों में से एक है जिन्होंने राजनीति की दिशा तय की।
और हिंदूत्वा , व हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को लेकर चलनेवाली एक मात्र पार्टी थी।
● उन्होंने कभी कांग्रेस पार्टी से हाथ मिलाने के बारे में सोचा भी नहीं परंतु आज उन्ही का बेटा हिंदूवादी आदर्श, और विचारों को दरकिनार कर कांग्रेस जैसी भ्रष्ट पार्टी से हाथ मिला ही लिया। उद्धव ठाकरे अपने पिता द्वारा बनाई पार्टी के उद्देश्य को भूल गए और सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की लालसा में कांग्रेस पार्टी से हाथ मिला लिया। जो कभी किसी ने न सोचा था।
●वे अपने पिता की तरह लोकप्रियता कभी हासिल नही कर पाए। बाला साहेब की तरह राजनीतिक धाक भी जमा नही पाए।
●वहीं महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे में कुछ झलक दिखी परंतु उन्होंने भी उत्तरप्रदेशिय लोगो के खिलाफ मराठियों को भड़काकर दंगे कराये। इससे उनके खिलाफ उत्तरभरतीयो में रोष देखने को मिलता है। मगर वे भी कही से बाला साहेब की बराबरी नही कर पाए। फिर वो चाहे राजनीतिक लोकप्रियता, हो या हिंदूवादी विचार। हालांकि वे कभी कभी हिंदुत्व की बात करते है।
●कांग्रेस जैसी पार्टी जो आतंकियों, उग्रवादियों को समर्थन देती है, भ्रष्टाचार की सीमा पार करनेवाली पार्टी,ऐसी पार्टी से जुड़ कर उद्धव ठाकरे ने भूल की है, इस बात का आभास उन्हें अगले चुनाव में जरूर देखने को मिलेगा।
●हिंदू राष्ट्र की संकल्पना जैसी कोई बात अब शिवसेना में रही नही। केवल स्वार्थ के लिए अपने पिता का नाम भी डुबो चुके, और अलग ही रास्ते पर चल दिये उद्धव ठाकरे।
●बाला साहेब की राजनीतिक पैठ ही नही थी पूरी फिल्म इंडस्ट्री पर भी अपनी पकड़ बनाये रखी।
विवादास्पद व्यक्तित्व तो था ही, पूरी मुम्बई उनके नाम से कांपती थी। उनके किसी बेटे में ये काबिलियत दिखाई नहीं दी।
जब तक वे जिंदा रहे मुसलमान महाराष्ट्र में डर के ही रहते थे परंतु उनकी मृत्यु के बाद सबकुछ बदल गया। पार्टी के सिद्धांत बदलने लगे। अब पार्टी हिंदूवादी सोच से सेक्युलर विचारधारा को ओर चल दी।
● बाला साहेब जैसा दबंग व्यक्तित्व न हुआ न होगा। उन्होंने इंडिया tv के कार्यक्रम आप की अदालत में खुलकर कहा था, “इस देश मे मुसलमानों को रहना है तो इस देश को अपना मानकर रहना होगा। पाक परस्त सोच यहाँ नही चलेगी। आतंकियों से कोई बातचीत या केस नही कीया जा सकता , उन्हें गोली मार देनी चाहिए।
● बाला साहेब हिंदू हृदय सम्राट थे। उनकी जगह कोई नहीं ले सका। उन्होंने कहा था हिन्दुओ को अपने बचाव में आत्मघाती दस्तों की जरूरत है। आज उनकी बात सच लग रही है जिस तरह हिन्दुओ, व साधुओ, संतो पर लगातार महाराष्ट्र में हमला हो रहा है , पालघर घटना इसका जीता जागता उदाहरण है। उद्धव के राज में हिंदू ही सुरक्षित नही, और न वे स्थिति को संभाल पा रहे है।
●अब तो ये हाल है कि उद्धव ने राज ठाकरे पर निशाना साधते हुवे कहा है शिवसेना को अपना हिंदुत्व साबित करने के लिए झंडा बदलने की जरूरत नही। ये आपस मे ही तंज कर रहे एक दूसरे को ,मगर इन्हें जनता की फिक्र दिखाई नही देती।
●शिवसेना पार्टी के हालात अब पहले जैसे नही, कभी महाराष्ट्र की राजनीतिक दिशा तय करनेवाली पार्टी अपनी हिंदूवादी विचारधारा को पूरी तरह खो चुकी।।