November 15, 2024
Reena Tripathi 1

अजय शास्त्री (प्रकाशक व संपादक)

बीसीआर न्यूज़/लखनऊ, उत्तर प्रदेश: बेसिक शिक्षा विभाग का मूलभूत सिद्धांत रहा है- ज्ञान की अखण्डता- बुनियादी शिक्षा में ज्ञान को एक अभिन्न और अखण्ड इकाई माना जाता है और शिक्षकऔर बच्चे इसकी आधारशिला है।बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु ऑनलाइन हाज़िरी नहीं, शिक्षक जरूरी हैं और शिक्षकों को सभी गैर सरकारी कार्यों से मुक्ति जरुरी है।

लगभग अधिकांश शिक्षक रोज विद्यालय जाते ही हैं ।शिक्षक हाजिरी का विरोध नहीं कर रहे हैं बात कुछ और है जिसे समझना जरूरी है । सरकार को उनकी मूलभूत समस्याओं और बुनियादी मांगों का भी ध्यान रखना चाहिए।
मूलभूत सुविधाएं इसलिए कि बेसिक के विद्यालय दुरुह, दूर दराज, कई बार कई किलोमीटर तक पैदल चलकर पहुंचने वाले रास्ते में होते हैं ।कई विद्यालय तो ऐसी जगह पर है जहां पर आप अपने साधन से नहीं जा सकते। सार्वजनिक साधन का उपयोग करते हैं। वह भी पुराने जमाने वाले वाहन और बसे,जब तक वह पूरी सवारी भरते नहीं तब तक हिलते नहीं चाहे आप लाख सर पटक कर देख लीजिए पर सवारी पूरी भरने के बाद ही वह चलेंगे।
आपको आपके गणतंत्र तक पहुंचा तो देंगे पर समय आपको खुद देखना पड़ेगा सब्र के साथ,इनका क्या किया जाएं।
विद्यालयों की विषम परिस्थितियों के कारण बायोमैट्रिक अटेंडेंस सर्व सुलभ और आसानी से सभी विद्यालयों द्वारा संचालित की जा सकती है। पहले भी शिक्षकों ने बायोमेट्रिक अटेंडेंस मशीन लगाई जाने की मांग की थी क्योंकि बायोमेट्रिक मशीन है ना तो नेटवर्क से प्रभावित होती हैं और नहीं बिजली से छोटा सोलर पैनल से रिचार्ज भी किया जा सकता है। और बिना फेस भेजें थंब इंप्रेशन के माध्यम से हर व्यक्ति के अंगूठे की स्पेशल पहचान के द्वारा अटेंडेंस भी भेजी जा सकती है।बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली, कर्मचारी के फिंगरप्रिंट या अन्य विशिष्ट शारीरिक विशेषताओं जैसे वॉयस प्रिंट, रेटिना स्कैन, आईरिस स्कैन, हथेली के प्रिंट, चेहरे की पहचान, हाथ की ज्यामिति आदि को स्कैन करने के लिए एक कम्प्यूटरीकृत डिवाइस का उपयोग करती है। आज आधार हो या अन्य महत्वपूर्ण काम अंगूठे के निशान से हम उसे पूरा कर लेते हैं हर व्यक्ति की अपनी आईडेंटिकल पहचान है उसका अंगूठा उसे कोई दूसरा उसके अटेंडेंस भी नहीं लग सकता।
बायोमैट्रिक अटेंडेंस से शिक्षक बार-बार मोबाइल और टैबलेट के इस्तेमाल नहीं करेंगे जिससे गांव वालों के प्रति भी एक अच्छी छवि बनेगी।
शिक्षकों को न्यूनतम जीवन के लिए जरूरी मूलभूत सुविधाएं देना जरूरी है जैसा कि सब जानते हैं समय के साथ विद्यालयों में कायाकल्प हो चुका है विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध करा दी गई है इसके बाद भी अधिकांश विद्यालयों में टॉयलेट नहीं है। यदि सभी विद्यालयों में टॉयलेट रहे तो महिला शिक्षिकाओं को सामान्य और विशेष दिनों में बाथरूम जाने में समस्या नहीं होगी।
उच्च शिक्षा की भांति उपार्जित अवकाश भी समय की मांग हैं। यदि शिक्षकों को भी वर्ष में एक माह का उपार्जित अवकाश मिल जाएगा तो उन्हें अपने जीवन को सुरक्षित रखने हेतु और विद्यालय लेट पहुंचने पर अटेंडेंस का डर नहीं रहेगा वह इमरजेंसी में छुट्टी ले सकते हैं। एक वर्ष में तीस दिन की उपर्जित अवकाश एकत्र होकर बड़ी छुट्टियां के बैंक के रूप में शिक्षक के पास सुरक्षित रहता है जिसे वह 300 होने पर आराम से खर्च कर सकता है। अपने घर में पढ़ने वाले बेटी की शादी किसी की मृत्यु और आपस में कामों को निपटा सकता है।पुरानी पेंशन की बहाली भी बुनियादी जरूरत है। हर हाल में शिक्षकों को पुरानी पेंशन मिलनी ही चाहिए। यह उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगी।
शिक्षकों को विद्यालय में सिर्फ पढ़ाने का कार्य ही दिया जाना चाहिए,जिससे कि उनका ध्यान नई पाठ योजना बनाने बच्चों को किस तरह आसानी से समझाया जा सकता है यह बात सोचने और उनके भविष्य निर्माण हेतु योजनाओं के निर्माण में लग सके।किसी किसी विद्यालय में पांच कक्षाओं को एक शिक्षक या शिक्षामित्र चला रहा है आप कल्पना करें किसी दिन इस पूरे स्कूल की जिम्मेदारी उठाने वाला एकलौता शिक्षक या शिक्षा मित्र किसी दुर्घटना या इमरजेंसी में फंस जाता है तो अपनी जान को जोखिम में ही डालेगा और कुछ नहीं।
यदि हम बायोमेट्रिक से अटेंडेंस लेंगे तो उसमें भी डाटा एक बार ही फीड होता है जो जितने बजे आएगी उसके आने का समय उसमें अंकित हो जाएगा और जाने का भी। हमारे विभाग में खंड शिक्षा अधिकारी की नियुक्ति शिक्षकों और विद्यालय के निरीक्षण के लिए ही की गई है इसी तरह बहुत से एआरपी और अन्य लोग भी तैनात हैं जो आराम से इन बायोमेट्रिक में दी गई अटेंडेंस को कलेक्ट कर सकते हैं और इस प्रकार शिक्षकों को सेल्फी भेज कर अपने निजता के अधिकार का हनन भी नहीं महसूस होगा और आराम से अटेंडेंस भी दी जा सकेगी विद्यालयों में नेटवर्क ना होने की समस्या का सामना भी नहीं करना पड़ेगा।
@रीना त्रिपाठी
अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ सार्वजनिक संरक्षण समिति। 

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