हिंदी को बढ़ावा देने का मतलब है संस्कृति को बढ़ावा देना: मुनि जयंत कुमार
बीसीआर (नई दिल्ली): दिल्ली के काॅन्स्टीट्यूशन क्लब में ग्यारहवें विश्व हिन्दी दिवस समारोह में मुनि जयंत कुमार ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हिंदी भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हिंदी की सुरक्षा का मतलब है कि आप अपनी संस्कृति की सुरक्षा को लेकर चेतनावान हैं। हिंदी को जीवित रखने के लिए जिस तरह के आयोजन किए जा रहे हैं। उसके लिए आयोजनकर्ता साधुवाद के पात्र हैं। क्योंकि हिंदी हम लोगों को बहुत प्रिय है। भारतीय संस्कृति में साधु संतों का बहुत महत्व है उन्हें बहुत सम्मान दिया जाता है। कोई भी साधु संत हिंदी से प्यार ना करें ऐसा नहीं हो सकता।
मैं यहां पर महान विभूति आचार्य तुलसी का जिक्र करना चाहूंगा। आजादी के तुरंत बाद आचार्य तुलसी ने अपनी अणुव्रत यात्राओं के दौरान तमिलनाडू में हिंदी में भाषण दिया था। जबकि लोगों ने उनसे कहा था कि आप तमिलनाडू में हिंदी में अपना भाषण ना दें यदि आप ऐसा करते हैं तो आपका घोर विरोध होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि लोगों ने जोरदार स्वागत किया। जो इस बात को साबित करता है कि लोग हिंदी से नफरत नहीं करते हैं। यह जो प्रांतवाद है, भेदभाव है। यह किस की देन है। मुझे नहीं पता है लेकिन साधु संतों के सहयोग से जो भारत की तस्वीर विश्व पटल पर बनती है वह अखंड भारत की तस्वीर है।
मैं यहां पर आचार्य महाप्रज्ञ जी महाराज का नाम लेना चाहूंगा, जिन्होंने हिंदी में 350 पुस्तकें लिखी हैं। जो ज्ञान से भरपूर हैं। दार्शनिक, विचारक महाप्रज्ञ जी के साथ साथ ये किताबें पूरे विश्व में अपनी पहचान रखती हैं। यह भारत के लिए गौरव की बात है। लेकिन वहीं यह दुख की बात है कि दिल्ली में चल रहे पुस्तक मेले में अंग्रेजी साहित्य और उनके लेखकों को प्रथम स्थान दिया गया है। ऐसा क्यों । क्या हम हिंदी साहित्य और उसके लेखकों को प्रमुखता नहीं दे सकते। ये भेदभाव क्यों। हिन्दुस्तान की जमीन पर हिंदी साहित्य को प्रमुखता क्यों नहीं। यह दुख की बात है।
आज मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि मैं अपने विचार हिंदी के माध्यम से लोगों के बीच तक पहुंचा रहा हूं। हिंदी साहित्यकारों का संघर्ष किसी से भी छिपा नहीं है। मैं यहां पर सरकार के द्वारा हिंदी साहित्यकारों को दिए जाने वाले अवार्डाें के विभागों की बात करूं तो बड़ी हैरानी होती है कि इन विभागों के दफ्तरों के बाहर बोर्ड पर पहले नाम अंग्रेजी में लिखा होता है और उसके नीचे अंग्रेजी का अनुवाद हिंदी में लिखा होता है। जिनमें बहुत सारी त्रुटियां रहती हैं। इसलिए मैं हिंदी को बढ़ावा देने के कार्यक्रमों को सार्थक नहीं मान सकता। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए, व्यापक बनाने के लिए यह भेदभाव को छोड़ना होगा। हिंदी को बढ़ावा देने का मतलब है संस्कृति को बढ़ावा देना। अत इसके लिए हिंदी के लिए किए जाने वाले प्रयासों पर ध्यान देना होगा। भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देनेे की बातें तो बहुत होती हैं। राजनीतिक लोगों के इसको लेकर बयान भी बहुत आते हैं लेकिन क्या ये लोग अभी भारतीय संस्कृति को समझ पाए हैं। आजकल राजनीति में धर्म को लेकर भी बयानबाजी खूब हो रही है। कुछ लोग धर्म झंडावरदार बने हुए हैं और खुले आम कहते पाए जाते हैं कि हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ है। वे संप्रदायिक कट्टरता के बयान देकर उग्रता फैला रहे हैं। यह अनुचित है। भारतीय संस्कृति हमें यह सिखाती है कि हम सभी आपस में मिलजुल कर भाई चारे के साथ रहें। ना कि धर्म की वजह से आपस में लड़ें।
आचार्य तुलसी ने कहा कि सबसे पहले इंसान इंसान हैं फिर हिन्दू और मुसलमान। इसलिए इस सबसे उपर उठकर सोचे और हिंदी भाषा और संस्कृति को बढावा देने के लिए प्रयास करे।
मैं यहां पर उपस्थित सभी लोगों से अपील करता हूं कि जब यहां से बाहर निकलेंगे तो सिर्फ इंसानियत की बात करेंगे ना कि हिंदू और मुसलमान की।
इस कार्यक्रम में अध्यक्ष के बतौर श्री ब्रज किशोर शर्मा, अध्यक्ष राजा राम मोहन लाइब्रेरी फाउण्डेशनय अतिथि श्री गिरिश शंकर, सचिव, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, सम्मानार्थ व्यक्तित्व श्री नरेंद्र कोहली, उपन्यासकार, मुख्य वक्ता सत्य नारायण जटिया, उपाध्यक्ष राजभाषा समिति, विशिष्ट अतिथि श्री अश्विनी चैबे, सांसद भागलपुर, राम कुमार शर्मा, सांसद सीतामढ़ी, संजीव मिश्रा वित्त सलाहकार, के.रि.पु.ब, गृह मंत्रालय, श्री रवि प्रकाश सिंह, निदेशक, पावरग्रिड, गुड़गांव थे।
कवियों में मुख्यता डा कुंवर बैचेन, श्री लक्ष्मी वाजपेई, श्री गजेंद्र सोलंकी, श्री राजेश चेतन, श्री नरेश शांडिल्य, श्री शिव कुमार विलगरामी, श्री शशिकांत, श्री राहुल नील, श्री चिराग जैन थे।