बीसीआर न्यूज़ (नई दिल्ली): फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती पर इतिहास से छेड़छाड़ के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। जयपुर में फिल्म की शूटिंग के दौरान करणी सेना के गुस्साए कार्यकर्ताओं ने भंसाली पर हमला कर दिया और उनकी पिटाई कर दी। करणी सेना का कहना है कि इस मुद्दे पर लगातार भंसाली से कहा गया कि वे इतिहास से गड़बड़ी ना करें। लेकिन वे अनुसनी करते रहे। लेकिन मारपीट और गुंडागर्दी करना गलत ही होगा। परंतु यहां पर अहम सवाल इतिहास का है। इतिहास एक ऐसा मसला है जिसमें विवाद है। सत्ता जिसके पास रही उसने इसे अपने हिसाब से ढाल लिया। मेरा मानना है कि वर्तमान में हाल यह है कि भारतीय राजाओं के पक्ष में जो भी बातें हैं उन्हें लोककथाएं कह दिया जाता है। जनश्रुतियां कहकर सबूत मांग लिए जाते हैं। वहीं धर्मनिरपेक्षता के पर्दे के लिए बाहर से आए शासकों की वाहवाही होती है। देश के किसी भी राज्य के इतिहास का आंकलन विदेशी इतिहासकारों के आधार पर होता है।
इतिहासकारों का अकसर यह कहना होता है कि राजपूत (ज्यादातर शासक इसी वंश से आते हैं) आपस में लड़ते रहे और इसी के चलते देश में-पर इस्लामी और अंग्रेजी ताकतों का शासन रहा। लेकिन इस तर्क में वे यह बात भूल जाते हैं या नजरअंदाज कर देते हैं कि बाहरी ताकतों का मुकाबला भी इन्हीं ने किया। भारतीय शासक विस्तारवादी सोच में नहीं थे। साथ ही वे जिस क्षात्र धर्म के लिए लड़ते थे उसमें कुछ बातें ऐसी थी जो उन्हें साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ कमजोर बनाती थी। इस्लामी आक्रांताओं के हमलों के बीच धर्म विस्तार का पुट था। बाबर ने महाराणा सांगा के खिलाफ जंग में इसी सहारे के बदले पासा पलटा था।
मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान ने हराकर माफ दिया लेकिन जब गौरी को जीत मिली तो चौहान बंदी बना लिए गए। महाराणा प्रताप ने अकबर से लोहा लिया था। इसके लिए वे जंगलों में रहे। लेकिन उनकी यह बात भुला दी जाती है और अकबर की धर्मनिरपेक्षता गिनाई जाने लगती है। इस बात में कोई वितर्क नहीं है अकबर का व्यवहार जनता में भेद नहीं करता था। लेकिन प्रताप के त्याग को क्योंकर कमतर कर दिया गया। क्या यह इतिहासकारों की जिम्मेदारी नहीं कि वे गलत तथ्य दिखाए जाने पर विरोध करें।
फिल्मकारों ने कहानियां वहीं चुनी जिसमें हिंदू-मुस्लिम पुट था। शायद यह सोचकर कि इससे धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन यह फालतू की बात है। जोधा अकबर, बाजीराव मस्तानी और अब पद्मावती। आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा अकबर को लेकर विवाद हुआ। उन्होंने जोधाबाई को जयपुर की राजकुमारी बताया। राजपूत संगठनों का कहना था कि वह जोधपुर से थीं और जहांगीर की पत्नी थी। अगर गोवारिकर इस बात को मान लेते और सुधार कर फिल्म बना लेते तो क्या प्रेम की महत्ता कम हो जाती। वे नहीं माने, नतीजा फिल्म राजस्थान में रीलीज नहीं हुई। भंसाली भी शायद वही गलती दोहरा रहे हैं। पद्मिनी जो कि राजा रतन सिंह की पत्नी थीं, वह राजस्थान में स्त्रियों के लिए आदर्श मानी जाती हैं। अगर उन्हें अल्लाऊद्दीन खिलजी की प्रेमिका बताया जाएगा तो संभव है कि आने वाली नस्लें इसे ही सच मान बैठेंगी।