बीसीआर न्यूज़ (मुम्बई) क्या कहेंगे इसको क्या देश की न्याय व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है कि जिसने जुर्म किया वो सात साल में बाहर और पीड़त चालीस साल बिस्तर पर उसके अपराध की सजा भोगी, यहा तक की दया मृत्यु भी न मिल सकी उसको। जी ऐसा ही कई प्रश्न दिमाग में उभर रहा था जब मुंबई के अस्पताल में चार दशकों तक कोमा में रही नर्स अरूणा शानबाग की 68 साल की उम्र में मौत हो गई है।
अरुणा एक अस्पताल में देश के एक एकदम अलग हिस्से से आकर नर्स की नौकरी कर रही थी। उसके साथ उसी अस्पताल के एक कर्मचारी ने वर्ष 1973 में यौन हिंसा की थी। इस घटना के दौरान अरूणा के दिमाग को ऑक्सीजन न मिल पाने से वो कोमा में चली गईं थीं। उन्हें अस्पताल में ही भर्ती रखा गया। आरोपी को पुलिस ने पकड़ लिया और न्यायलय ने उसके अपराध के लिए उसको 7 वर्षो की कैद की सजा सुना दी। वो एक अपराधी अपने अपराध की 7 साल सजा काट कर आज़ाद हो गया और खुली हवा में आज कही घूम रहा होगा मगर अरुणा जो खुद अपराध का शिकार थी जिसने कोई अपराध नहीं किया था उसकी सजा जो उसको मिली वो किसी की भी आँखों की पलकों को नम करने के लिए बहूत है। अरुणा इस घटना से जो कोमा में गई तो 42 वर्षो के बाद उसकी यह निंद्रा चिर निंद्रा में ही तब्दील हुई वो दुबारा इस दुनिया को नहीं देख सकी। उस एक रात की घटना ने अरुणा को आज बेनाम और लावारिस मौत दी। इस दरमियान दया मृत्यु की भाई मांग की गई परंतु वो भी नामंज़ूर हो गई।
अरुणा का कोई न होने के अस्पताल के स्टाफ़ ने ही उनकी चार दशक तक देखभाल की।
मुंबई के केईएम अस्पताल के ड्यूटी अधिकारी डॉक्टर प्रवीण बांगर के मुताबिक सोमवार सुबह भारतीय समयानुसार साढ़े आठ बजे अरुणा शानबाग की मौत हो गई। वे पिछले चार दिनों से वेंटीलेटर पर थीं. उन्हें न्यूमोनिया हो गया था।