फिल्म समीक्षा: तनु वेड्स मनु रिटर्न्स
समीक्षक: अजय शास्त्री
डायरेक्टर: आनंद एल, राय
शैली: रोमांटिक
संगीत: तनिष्क वायु
कलाकार: कंगना राणावत, आर माधवन, स्वर भास्कर
रेटिंग: ३.५ स्टार
सारांश-
कहानी क्या है- लंदन में रह रहे तनु (कंगना रनावत) और मनु (आर माधवन) की शादी को चार साल हो चुके है और समय के साथ उनमें प्यार खत्म हो जाता है। नौबत यहां तक आ जाती है कि तनु अपने पति को पागलखाने छोड़ आती है और खुद अकेले कानपुर में अपने माईके में रहने लगती है। मनु का भाई पप्पी (दीपक दोब्रियाल) उसे पागलखाने से बाहर निकालता है और वो दोनों साथ में दिल्ली आ जाते है जहां मनु को तनु की हमशक्ल मिलती है जिसका नाम कुसुम है। कुसुम दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ती है और नेशनल लेवेल की खिलाड़ी है। मनु और कुसुम को एक दूसरे से प्यार हो जाता है लेकिन यहां पर पता चलता है कि कुसुम की शादी राजा अवस्थी (जिमी शेरगिल) से तय हो चुकी है। अब आगे क्या होगा? जानने के लिए देखिए तनु वेड्स मनु रिटर्न्स।
क्या है खास-
सीधे प्वाइंट की बात करें तो तनु वेड्स मनु रिटर्नस कमाल की फिल्म है और निर्दशक आनंद राय ने इसी के साथ साफ तौर पर तनु वेड्स मनु और रांझना के बाद हिट फिल्मों की हैट्रिक लगा दी है।
मिया-बीवी के आम झगडों से लेकर प्रेम से उब चुके जोड़ी की ये कहानी इतनी मज़बूत नहीं है लेकिन कमाल की बात ये है कि इसके बावजूद आप इसको अंत तक एंज्वाय करते है। इसकी ख़ास वजह है इसके किरदार जिनको काफी अच्छी तरीके से लिखा गया है और इसके डायलॉग्स जो इन किरदारों को मज़बूती देते है। पंजाबी, हरयाणवी, यूपी के रंग इसमें झलकते है और अच्छे से मेल खाते है।
हंसी-मजाक के चलते आनंद कुछ गंभीर बातों को बड़ी ही सरलता के साथ कह जाते है। खाप पंचायत की छोटी सोच, ऑनर किलिंग और वैज्ञानिक तरीके से पैदा किये गये बच्चे की जरूरत- इन सब मुद्दों पर निर्देशक बिना ज्यादा जोर डाले रौशनी डालते है।
लेकिन मुख्य बात से वो भटकते नहीं है। फिल्म में ट्विस्ट है और एक नहीं कई है। ये सब कुछ अभिनेताओं की कमाल की अदाकारी से काफी शानदार लगता है।
कंगना रनाअत की जितनी तारीफ करें उतनी कम है यहां। क्वीन फिल्म के बाद उनका आत्मविश्वास फिल्म रिवॉल्वर रानी में ही दिख गया था। इस फिल्म से वो अपने अभिनेय को एक लेवेल ऊपर ले गई है। तनु को तो हम पहले ही देख चुके है। इस बार आप कुसुम के किरदार में कंगना से प्यार कर बैठेंगे। ये दोनों किरदार अलग है और दोनों सराहनीय।
कंगना रनाअत तो पूरी फिल्म में छाईं रहती है लेकिन दाद देनी होगी बाकी के किरदारों की भी जो बराबरी से हमारा मनोरंजन करते है और हमारी वाह-वही बंटोरते है।
आर माधवन को ज्यादा बोलने का मौका नहीं मिलता है लेकिन ऐसा करने की ही उन्हें जरूरत थी।
दीपक डोबरियाल की तारीफ अगर न करें तो ये नंइंसाफी होगी। हंसाने की उनकी टाइंमिंग कमाल की है और वो जितनी बार भी पर्दे पर आते है, आपकी हंसी किसी न किसी तरह से छूट ही जाती है।
स्वारा भास्कर फिल्म में शादी-शुदा है लेकिन अपनी आदतों से बाज़ आती नहीं दिखती है। उनकी भी अच्छी अदाकारी की है।
जिमी शेरगिल अपना वहीं आक्रोश और धैर्य बरकरार रखते है जो वो तनु वेड्स मनु और बाकी फिल्मों में दिखाते आ रहे है।
मोहम्मद ज़ीशान वकालत की पढ़ाई कर रहे एक युवा के किरदार में खूब जान डालते है। वो शब्दों से खेलते है और अपनी शायरी से हमारा दिल जीतते है।
क्या है कमजोर कड़ी-
फिल्म जो आपको हंसाती है और कभी-कभी इमोशनल भी करती है सिर्फ कुछ ही जगहों पर अपनी लय खोती है। फिल्म का कलाईमेक्स काफी नाटकीय है और पहली फिल्मों में काफी देखा जा चुका है। यहां पर निर्देशिक को कुछ नया करने की जरूरत थी।
आखिरी राय-
फिल्म कुछ खामियों के बावजूद आपको अंत तक बांधे रखती है। फिल्म की रफ्तार थमती नहीं है और न ही आपको आराम करने देती है। इसे साल की अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक कहा जा सकता है। और कंगना उनका तो कहना ही क्या।