वैसे आजकल मृत्युभोज के विरोध पर बहुत लिखा जा रहा है। पर इसमें मेरा मत अलग है। आप सब भी इसे पढ़े और अपनी राय दें।
28 जुलाई 2020
विनुविनीत त्यागी
(बी. सी. आर. न्यूज़)
मेरे हिसाब से मृत्युभोज कुरीति नहीं है, यह समाज और रिश्तों को सँगठित करने के अवसर की पवित्र परम्परा है। हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा ज्ञानी थे उन्होंने कुछ सोच समझकर ही ऐसी सामजिक परंपरा की शुरुवात की होगी। इसका पौराणिक महत्व भी सनातन धर्म के हिसाब से बहुत होता है।
आज मृत्युभोज का विरोध हो रहा है, कल विवाह भोज का भी विरोध होगा.. धीरे धीरे हर उस सनातन परंपरा का विरोध होगा जिससे हमारे आपसी रिश्ते मजबूत होते है और हमारा सनातनी समाज भी मजबूत होता है..एक दूसरे के सुख दुख में भागीदारी का अवसर मिलता है लोग एक दूसरे से मिलते भी है।
इसका विरोध करने वाले ज्ञानियों आपके बाप दादाओ ने रिश्तों को जिंदा रखने के लिए ये परम्पराएं बनाई हैं! ये सब बंद हो गए तो रिश्तेदारों, सगे समबंधियों, शुभचिंतकों को एक जगह एकत्रित कर मेल जोल का दूसरा माध्यम क्या है?
दुख की घड़ी मे भी रिश्तों को कैसे प्रगाढ़ किया जाय ये हमारे पूर्वज अच्छे से जानते थे..। हमारे बाप दादा बहुत समझदार थे, वो ऐसे आयोजन रिश्तों को सहेजने और जिंदा रखने के किए करते थे जो आज तक हमारे समाज में चली आ रही है ।
हा ये सही है की कुछ लोगों ने मृत्युभोज को हेकड़ी और शान शौकत दिखाने का माध्यम बना लिया है।
आप मृत्यु भोज में सिर्फ पूड़ी सब्जी ही खिलाओ ना, कौन आपको कहता है की आप अपना खर्च बढ़ाकर सबको 10 आइटम परोसो.. मैं खुद दिखावे का विरोधी हूँ लेकिन अपनी सनातनी परंपरा का कट्टर समर्थक हूँ।
कुछ लोगो की वजह से हमारे बाप दादाओं ने जो रिश्ते सहजने की परंपरा दी उसे मत छोड़ो, यही वो परम्पराएँ हैं जो दूर दूर के रिश्ते नाते को एक जगह लाकर फिर से जान डालते हैं समय समय पर। एक दूसरे को जोड़ने का कार्य करते है।
सुधारना हो तो ऐसे लोगों को सुधारो जो ऐसे आयोजन को रिश्तों को सहेजने की बजाय हेकड़ी दिखाने के लिए करते हैं।
हमारे बाप दादा जो परम्पराएं देकर गए हैं रिश्ते सहेजने के लिए उसको बन्द करने का ज्ञान मत बाटो, वरना तरस जाओगे मेल जोल को, ऐसी रीतिया बंद बिल्कुल मत करो।
समय समय पर अपने शुभचिंतकों ओर रिश्तेदारों को एक जगह एकत्रित होने की परम्परा जारी रखो।
ये संजीवनी है अपने रिश्ते नातों को जिन्दा करने की।।