November 14, 2024
brothers

समीक्षा: ब्रदर्स
समीक्षक: अजय शास्त्री
निर्देशक: कारन मल्होत्रा
संगीत: अजय-अतुल
अभिनय: अक्षय कुमार, सिद्धार्थ मल्होत्रा, जैक्लीन फर्नांडिस, जैकी श्रॉफ, शेफाली शाह, आशुतोष राणा, किरन कुमार व अन्य।
रेटिंग: ३.५ स्टार

समीक्षा:
बीसीआर न्यूज़ (नई दिल्ली): फिल्म ‘ब्रदर्स’ हॉलीवुड फिल्म ‘वॉरियर’ की रीमेक है, मगर उससे कहीं बेहतर है। ‘ब्रदर्स’ में पियक्कड़ बाप (जैकी श्रॉफ) है, दो भाई हैं (अक्षय कुमार-डेविड और सिद्धार्थ मल्होत्रा-मोंटी)। मां (शेफाली शाह) है। मगर फिल्म में खास बात यह है कि फिल्म में कोई विलेन नहीं। ‘ब्रदर्स’ फिल्म नाम की ही तरह दो भाइयों की कहानी है, जो किन्ही कारणों से अलग-अलग रहते हैं। फिल्म के अंदर ड्रामा है, एक्शन है, इमोशन है, पर डब्ल्यूडब्ल्यूई टाइप फाइट के शौकीनों के लिए सिर्फ सेकंड हाफ ही है। ‘ब्रदर्स’ फिल्म का डायरेक्शन करण मल्होत्रा ने किया है, जो इससे पहले अग्निपथ जैसी फिल्म डायरेक्ट कर चुके हैं। चूंकि फिल्म करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन की है, तो धर्मा प्रोडक्शन की छाप भी है। बात कहानी की करें, डेविड फर्नांडिस (अक्षय कुमार) एक स्ट्रीट फाइटर (मुंबई की सड़कों पर पैसों के लिए गैर-कानूनी फाइट करने वाला) था, मगर अब वह अपनी बीवी और बच्ची के लिए सब कुछ छोड़कर स्कूल में पढ़ाता है और तमाम छोटे-मोटे काम करता है। जिससे घर का खर्च चला सके| लेकिन वक्त बहुत ही बलवान होता है, बेटी को किडनी की प्रॉब्लम है। उसे बचाने के लिए डेविड को मजबूरन रिंग में उतरना होता है। जैक्लीन फर्नांडिस डेविड की पत्नी जेनी के रोल में हैं। बाप के किरदार में जैकी श्रॉफ हैं, जो अपने परिवार को बेहद प्यार तो करता है, पर स्ट्रीट फाइटर होने के साथ-साथ बड़ा पियक्कड़ है। जिस कारण अक्षय यानि डेविड कि माँ का जैकी (पिता) के हाथों अनजाने में मर्डर हो जाता है, और डेविड अपने बाप से नफरत करने लगता है. इस फिल्म में मिक्स मॉर्शल ऑर्ट जो वाकई हिंदुस्तान में स्ट्रीट फाइटिंग या फिल्मों तक ही है, को पीटर ब्रिगेंजा (किरन कुमार) आधिकारिक मान्यता दिलवाता है। इसके 8 फाइटर 48 घंटे के नॉन-स्टॉप मुकाबले के लिए रिंग में उतरते हैं। फिल्म में खतरनाक फाइटर्स हैं, जिन्हें हराते हुए डेविड और मोंटी फाइनल में पहुंचते हैं। यहीं से फिल्म आपको रोमांच के अलग ही स्तर पर ले जाती है। बहरहाल, बाकी की कहानी फिल्म देखने के बाद ही समझें, तो ज्यादा मजा आएगा।

संगीत:
संगीत पक्ष की बात करें, तो ‘ब्रदर्स एंथम’ शानदार तरीके से फिल्माया गया है। ‘मिस मैरी’ बनकर करीना कपूर ने कहर ढाने की कोशिश की है, मगर फिल्म कि फाइट ने करीना कि अदाओं को भी फीका कर दिया। बाकी फिल्म का कोई भी गाना आपको थिएटर के बाहर शायद ही याद रहे। अजय-अतुल की जोड़ी को म्यूजिक पर और काम करना था। खैर, मिक्स मॉर्शल ऑर्ट पर आधारित फिल्म में ये संगीत भी काम चला लेगा। करीना पर फिल्माया गया गानाऔर भी अच्छा हो सकता था.

सिनेमैटोग्राफी:
फिल्म में हेमंत चतुर्वेदी की सिनेमाटोग्राफी बहुत ही बेहतर है, अकीव अली की एडिटिंग ठीक-ठाक ही कहेंगे। कुछ सीन छोटे किए जा सकते थे। डायलॉग सिद्धार्थ और गरिमा ने मिलकर लिखे हैं। कहानी को और भी दमदार बनाया जा सकता था, कुछ दमदार पंच और होने चाहिए थे। वैसे, सिद्धार्थ के हिस्से में गुस्से वाले डॉयलॉग उनके ‘एंटीहीरो’ टाइप करियर को आगे ही ले जाएंगे।

अभिनय:
अभिनय की बात करें, तो अक्षय कुमार हमेशा की तरह बेहतरीन रहे हैं, मगर सिद्धार्थ मल्होत्राने भी साबित कर दिया कि वह भी आने वाला दमदार हीरो है, जो एंटीहीरो के तौर पर अपनी पहचान रखते हैं।फिल्म “एक विलेन” के बाद ये फिल्म उन्हें बहुत आगे ले जाएगी। आशुतोष राणा अपने किरदार में बेहद जंचे हैं, तो किरन कुमार का किरदार भी प्रभावी है। वैसे किरन कुमार इस फिल्म में कहीं कहीं असली के ललित मोदी (पूर्व आईपीएल कमिश्नर) लगे हैं। जैकलीन भी ठीकठाक रही हैं। बच्ची ने भी अपना किरदार शानदार तरीके से निभाया है। जैकी श्रॉफ तो जैसे धूम-3 से अपने करियर को नित नया आयाम दे रहे हैं। उन्होंने शानदार एक्टिंग की है। इस फिल्म में जैकी ने अमिताभ बच्चन कि याद दिल दी, जैसे अमिताभ बच्चन जितने बूढ़े होते जा रहे है उतने ही दमदार कलाकार बनते जा रहे, वैसे ही एक्टिंग आज इस फिल्म में देखने को मिली.

क्यों देखें:
पारिवारिक कलह को समझने की खातिर, अपनों की खातिर, नफरत से पार पाने की खातिर। नफरत आखिर में कुछ नहीं देती, सिवाय पछतावे की। यही फिल्म की यूएसपी है।

क्यों न देखें:
अगर आप मारधाड़, इमोशंस, ज़िन्दगी की जद्दोजहद से दूर रहना चाहते हैं, तो न देखें। मगर आपको अगर ज़िन्दगी की असलियत जाननी है तो एक बार इस फिल्म को जरूर देखें।

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