इक झूठा सच विनुविनीत….. *सबसे ऊंची प्रेम सगाई” नाम आये जुबां पर तो जुबान खुशबू दे” “रहे वो घर में तो सारा मकान खुशबू दे” “प्रेम का पंथ बड़ा खुशनुमा पंथ हैं” “चले जो उस पर तो कदमों के निशान खुशबू दे…* प्रेम जीवन मे आंतरिक सम्बन्धो को जोड़ने वाली कड़ी हैं, जीवन मे कुछ भी कर सको या नहीं लेकिन प्रेमभाव जाग्रत करो। “जा घर प्रेम ना संचरे, ता घर जानो मसान। एक मकान होता हैं जो ईट पत्थर से बनता और एक घर होता हैं जो आपस के प्रेम से निर्मित होता हैं। दोनों में फर्क सिर इतना हैं कि, मकान बनाया जाता हैं और घर बसाया जाता हैं। मकान बनाने के लिए ईट पत्थर , सीमेंट जैसे निर्जीव पदार्थो की जरूरत होती हैं जबकि घर बसानने के लिए माँ-बाप, भाई-बहन, पति-पत्नी और बच्चों के पाक पवित्र रिश्तों का प्रेम चाहिए । जिस घर मे मनमुटाव हैं, मतभेद हैं, तनाव टेंशन हैं वो घर श्मशान के समान हैं। श्मशान में आपने देखा होगा कि एक चिता के पास अन्य चिताएं भी जल रही हो तो उन्हें एक दूसरे से कोई फर्क नहीं फर्क नहीं पड़ता । जलने वाली हर एक चिता, पास में जल रही दूसरी चिता से बे खबर रहती हैं। कब्रिस्तान में एक कब्र के चाहे दूसरी जितनी भी कब्रें बना दी जाएं, एक-दूसरे से वे बेखबर ही रहती हैं। यदि आप भी घर मे एक-दूसरे से मनमुटाव के चलते ना बोलते हो तो खुद को जीती जागती लाश ही समझना । परिवार और समाज में यदि स्नेह सूत्र नहीं हैं, तो हम एक लाश से ज्यादा कुछ नहीं हैं । दिन-रात कितनी भी पूजा-पाठ करो या माला जपो, यदि प्रभु से प्रेम नहीं हैं तो ये सभी क्रियाएं तुम्हारे मन व शरीर का एक ढोंग-आडम्बर मात्र ही हैं क्योंकि आप प्रभु की भक्ति-दिन के समय अपने मन प्रभु की आराधना-वन्दना के अलावा अगर कुछ और सोच रहे हैं तो आप प्रभु को नही खुद अपने आपको धोखा दे रहे है। परेम में बंधन, रीति रिवाज, परम्पराएं, व्यवस्था आदि की कोई बेड़िया और अवरोधक काम नहीं आते । इसलिए कहां गया हैं कि, “प्रेम गली अति सांकरी जा में दो ना समाऐं। प्रेम में भक्त और भगवान के बीच तीसरे की कोई गुंजाईश ही कहाँ हैं । कौन हैं ऐसा जिसने प्रेम को स्वीकार न किया हो । कबीरदास जी ने ढाई आखर प्रेम के के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और कह दिया कि, पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय । रहीम ने प्रेम मार्ग के पथिको की जुगलबंदी करते हुए कहा — रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटखाय, तोड़े से फिर ना जुड़े-जुड़े गाठ पड़ जाए । मीरा कहती हैं– “ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी” जीजस भी इसी प्रेम पथ के मुसाफिर हैं । वे कहते हैं– “Love is god” यानी प्रेम ही भगवान का दूसरा रूप हैं । भगवान महावीर ने भी तो प्रेम को ही पूजा हैं, जपा हैं । इंसान यदि समस्त जीवों, प्राणियों, पेड़ पौधों से प्रेम ना करे तो उसका प्रभु की वंदना करना, भगवान नाम की माला जपना व्यर्थ हैं । यदि आप अपने कार्यो की व्यस्तता के कारण मन्दिर,मस्जिद,गुरुद्वारे व गिरजाघर नहीं जा पाओ तो किसी रट हुए बच्चे के आंसू पोछ देना, किसी लाचार को सहारा दे देना, किसी भूखे को दो निवाले प्रेम से खिला देना इससे तुम्हारी पूजा भी हो जाएगी, इबादत हो गई, और तुम्हारी अरदास, दुआ भी काबुल हो जाएगी पर बशर्ते ये कार्य निःस्वार्थभाव से सच्चे दिल से करोगे तभी इसका पूण्य, शबाब और फल मिलेगा । इसलिए दुनिया मे केवल गाय और बछड़े का ही प्रेम निस्वार्थ हैं, क्योकि इंसान की मां तो अपने बच्चे को बस नो महीने ही अपना दूध पिलाती हैं, पर गौमाता तो अपने बछड़े के हिस्से का दूध बचाकर जीवन भर इंसान को दूध पिलाती हैं । आज का आदमी इंसान से प्रेम करना भूल गया हैं । उसके घर मे कुत्ते, बिल्ली तोते जैसे जीवो को तो पालने के लिए जगाह हैं, लेकिन बूढ़े मां-बाप के लिए कोई जगाह नहीं हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन हमे पालने कामयाब करने के लिए समर्पित कर दिया जिन्होंने अपनी हर ख्वाईश को मारकर हमारी छोटी-छोटी ख्वाईशें भी जुबां से निकले ने से पहले ही पूरी की हैं, पर हर जगाह पर भी इस ऐसा संभव नही होता क्योंकि सबकी अपनी-अपनी स्थिति-परिस्ताथी होती हैं। जाने कैसे धर्मात्मा हो तुम? इंसान से रिश्ता जोड़ते समय या प्रेम करते समय ऊँच-नीच और जात-पात देखते हो । क्या कभी कुत्ते की जात पूछते हो, इंसान को पालते समय तो हजार शर्त लगाते हो लेकिन कोई कुत्ता अगर तुम्हें सड़क पर चलते पूछ हिलाकर पीछे पीछे आ जाये तो उसे तुम अपने घर मे तुरन्त जगाह देकर उसे पालने लगते हो उसके लिए महंगे महंगे बिस्किट और भी ना जाने कितने खड़ी पदार्थ उसके लिए ले आते हो क्योकि उसने तुम्हे देकर बस पूछ हिलाई थी और तुम उससे ही आकर्षित होकर उसे अपने जीवन मे व अपने परिवार में एक अहम ओहदा दे देते हो। पर जिस माँ-बाप ने तुम्हे अपना पेट काट-काटकर कुत्तो को पालने लायक कर दिया तुम उन माँ-बाप का तृसकर करके घर से निकल देते हो, बुढ़ापे में जब मां-बाप को ओलाद के सहारे की जरूरत होती हैं उस समय तुम उनको बेसहारा करके व्रद्ध आश्रम में सड़ने मारने के लिए फेंक आते हो, धिक्कार हैं ऐसे लोगो के जीवन पर जो अपने माँ-बाप के साथ ऐसा दुर्व्यहवार करते हैं। मंदिर-मस्जिद में तुम भगवान को ढूढ़ते हो और अपने असली भगवान को घर से बाहर धक्के देकर निकाल देते हो। जो इंसान अपनो से बड़ो का तृसकार करता हैं वो इंसान सिर्फ एक निर्जीव की भांति लाश मात्र ही हैं ऐसे इंसान का इस संसार मे होना ना होना बराबर ही हैं। अगर इस्नान की जोनी में जन्म लिया है तो आप पहले इंसान से मौहब्बत,प्रेम,प्यार दिल से करना सिखों वो प्रेम आप इंसान से किस रूप में कर रहे उसका इतना महत्व नहीं हैं, पर जो इंसान आपके लिए सदा समर्पित हो उसके लिए अपने दिल से प्रेम करो ना कि कोई ओपचारिक दिखवा, वो चाहे किसी भी रूप में क्यो न हो पर मां-बाप को अपने जीवन मे सर्वप्रथम दर्ज दो क्योकि उस जगह का हकदार सिर्फ और सिर्फ मैन-बाप ही हैं जिनके बाद ही आपके जीवन मे और किसी का नम्बर आता हैं। “छोटी सी जिंदगी में तकरार किस लिए, जब रहते हो दिलों में तो फिर ये दीवार किस लिए”……. खैर लिखने के लिए तो बहुत कुछ हैं प्रेम मार्ग पर बस में-बाप व अपने हितेषी को आप अपने जीवन में सर्वप्रथम जगाह देंगे तो आपका जीवन सफल-सरल बन जायेगा “जब हम छोटे थे तो ये कहकर लड़ते थे माँ मेरी हैं, पापा मेरे हैं, आज वे भाई बड़े होकर अलग अलग क्या हुए, अब ये कहकर लड़ते हैं माँ तेरी हैं, पापा तेरे हैं” …..अपने जाति विचारों को आप तक पहुंचाने वाला आपका अपना एक अनपढ़ छोटा सा लेख लिखने की कौशिश कर्ता-: विनुविनीत त्यागी (एक आजाद पत्रकार)*