September 24, 2024

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आईएसआईएस लड़ाकों ने इराक के सिंजार क्षेत्र में बड़े पैमाने पर यज़ीदी महिलाओं के यौन शोषण से बर्बर गुलामी की हदें पार कर दी. इन रिपोर्टस् ने दुनिया की अंतरात्मा को हिलाकर रख दिया है.

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बीसीआर न्यूज़ (नई दिल्ली): आईएसआईएस लड़ाकों ने इराक के सिंजार क्षेत्र में बड़े पैमाने पर यज़ीदी महिलाओं के यौन शोषण से बर्बर गुलामी की हदें पार कर दी. इन रिपोर्टस् ने दुनिया की अंतरात्मा को हिलाकर रख दिया है. आईएसआईएस इस कार्यवाई को धर्म से जोड़कर पेश करते हैं और इसे खुदा का फरमान करार देते हैं.

अमेरिकी अखबार यूएसए टूडे ने मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट के हवाले से बताया है कि आईएसआईएस का कहना है कि अगर कोई महिला यौवन तक नहीं पहुँची है मगर वह संभोग के लिए समक्ष है तो उस महिला दासी के साथ संभोग किया जा सकता है. और अगर वह संभोग के लिए फिट नहीं है, तो संभोग के बिना ही उससे आनंद लिया जा सकता है. हालांकि, यज़ीदी महिलाओं और लड़कियों का यौन शोषण और गुलामी दुनियाभर के अखबारों की सुर्खियों में है.

मुंबई स्थित एक इस्लामी धर्मगुरु ने यौन गुलामी की प्रथा का बचाव किया था. हाल ही में सऊदी अरब के शाह सलमान से 135,000 स्टर्लिंग पाने वाले भारत में इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष जाकिर नाइक के मुताबिक पैगंबर हजरत मुहम्मद के समय में मुसलमानों को युद्ध में लूटकर लाई गई दासी लड़कियों और महिलाओं के साथ शादी के बिना यौन संबंध बनाने की अनुमति दी गई थी. उनके मुताबिक कुरान के कई छंद हैं जिनमें कहा गया है कि आप अपनी पत्नियों और अपनी दासियों से साथ साथ यौन संबंध स्थापित कर सकते हैं. इस्लामी इतिहासकार स्वीकार करते हैं कि हजरत मुहम्मद के दौर में इस्लाम का प्रसार करने के लिए यहूदियों और काफिरों के खिलाफ छोटी-छोटी जिहाद शुरू की गई थी. जिनका नेतृत्व खुद पैगंबर हजरत मुहम्मद कर रहे थे.

खैबर की जंग में साफिया नामक एक 17 वर्षीय युवती का पति मारा गया था. बाद में हजरत मुहम्मद ने उसके साथ विवाह कर लिया था. इस्लामिक वेबसाइट अलसिराज.कॉम पर इस बारे में पूरा विवरण मिलता है. पैगम्बर हजरत मौहम्मद की मृत्यु के बाद दासी प्रथा और जबरन विवाह का प्रचलन बढ़ गया.

जाकिर नाईक के अनुसार ‘इस्लाम की आड़’ में जहां पुरुष बेलगाम हुए, वहीं इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान में बेखौफ अपहरण, बलात्कार और नाबालिग हिंदू और ईसाई लड़कियों से शादी होती रही. भले पाकिस्तान का कानून में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी की मनाही हो. लेकिन वहां की सिविल-मिलिट्री हुकूमत जिस तरह से देश में मुस्िलम आबादी की पक्षधर रही हो, वहां हिंदू और ईसाई अल्पसंख्यकों की तादाद तेजी से घटती गई. खासतौर पर 1947 के विभाजन के दौरान हुए अल्पसंख्यकों के कत्लेआम के बाद से. पाकिस्तानी स्कॉलर और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की सहयोगी फरहनाज इसपहानी ने एक शोध पत्र “पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सफाई” में लिखा है कि 1947 में विभाजन के समय पाकिस्तान की आबादी में लगभग 23 फीसदी गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक शामिल थे.

आर्टिकल में इसपहानी लिखती हैं कि पाक में आज गैर-मुसलमानों का अनुपात लगभग 3 फीसदी की गिरावट आई है. उसी लेख में जरदारी और उनकी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सत्ता के दौरान हुए रिंकल कुमारी के मामले का उल्लेख है. उस मामले में एक सत्तारूढ़ दल के विधायक की मदद से रिंकल का अपहरण कर उसे शादी और इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया गया था. हालांकि इसपहानी ने उस पीपीपी नेता का नाम नहीं लिया. उसका नाम अब्दुल खालिक मियां मिठू है जो एक दरगाह का कार्यवाहक प्रभारी है.

पाकिस्तान ईसाई कांग्रेस के अध्यक्ष नजीर एस. भट्टी कहते हैं कि कुछ नेता और धर्मगुरु अल्पसंख्यक युवतियों को सिर्फ सेक्स के लिए जबरन अगवा कर लेते हैं. भट्टी आरोप लगाते हैं कि इन लड़कियों को इस्तेमाल करने के बाद इन्हें वेश्यावृत्ति में ढकेल दिया जाता है. यहां देह व्यापार और गुलामी बड़े पैमाने पर व्यवसाय बन गया है.

पाकिस्तान की एसोसिएटेड प्रेस के अनुसार 2014 में सरकार ने महिलाओं और लड़कियों के अपहरण और उन्हें शादी के लिए मजबूर किए जाने के 1,261 मामले दर्ज किए. जिनमें कई नाबालिग लड़कियां भी शामिल थीं. पाकिस्तान हिंदू पंचायत के महासचिव रवि दवानी बताते हैं कि जो हिंदू लड़कियां जबरन धर्म परिवर्तन और शादी का शिकार होती हैं. उनमें से 99 प्रतिशत 13 वर्ष से कम आयु की होती हैं. पिछले वर्ष के महीनों में सिर्फ अक्टूबर और नवंबर में ही हिंदू लड़कियों के अपहरण और विवाह के 20 नए मामले सिंध अदालतों में दर्ज किए गए थे.

हिंदू अधिकार कार्यकर्ता शंकर मेघवर के मुताबिक दस वर्षीय जीवनी बघरी को 12 फ़रवरी 2014 को घोटकी से अगवा कर लिया गया था. 13 महीने बाद उसे 11 मार्च 2015 को स्थानीय सत्र अदालत के न्यायाधीश ने वापस अपहर्ताओं को सौंप दिया. अदालत ने कहा कि अब वह इस्लाम कबूल कर चुकी है ऐसे में वह अपने माता-पिता के साथ नहीं जाना चाहती. पिछले वर्ष 14 दिसंबर को एक अन्य मामले में चार हथियारबंद लोग भील समुदाय के एक घर में घुसे थे और 13 वर्षीय सिंधी लड़की जागो भील का अपहरण कर लिया था. मेघवर कहते हैं पाकिस्तान का कानून 18 साल से कम आयु की लड़की की शादी को अपराध मानता है. लेकिन हिंदू लड़कियों के मामले में अदालत खामोश रहती हैं क्यों? न्याय के लिए कहां जाएं? किससे गुहार लगाएं?

ईसाई वकील सरदार मुश्ताक गिल के मुताबिक पाकिस्तान में अल्पसंख्यक लड़कियों से जबरन शादी करना वास्तव में कानूनन बलात्कार है. जिसका इस्तेमाल वहां की इस्लामी सत्ता में मनमाने ढंग से एक साधन के रूप में किया जा रहा है. यह मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का एक रूप बन सकता है. क्योंकि पीड़ितों में ज्यादातर धार्मिक अल्पसंख्यक हैं. जो सबसे कमजोर वर्ग के तौर पर रह रहे हैं. वो कहते हैं कि शायद ही कभी बलात्कारियों को यहां सजा मिलती हो.

आधुनिक इतिहास में यौन दासता और बलात्कार का सबसे भीषण उदाहरण 1971 में बांग्लादेश में देखना को मिला था. जहां बंगालियों के जीवन को सही करने के नाम पर पाकिस्तानी सैनिकों ने सिर्फ नौ महीनों में दो लाख से अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार किया था. जिसकी वजह से युद्ध के बाद वहां 25,000 शिशुओं का जन्म हुआ था.

किताब ‘राष्ट्र निर्माणः लिंग और दक्षिण एशिया में युद्ध अपराध’ के लेखक बीना डीकोस्टा ने जेस्सोर की यात्रा की थी जब वहां सैन्य तानाशाह याह्या खान की सत्ता थी. उनके सामने बंगाली ग्रामीणों की ओर इशारा करते हुए पत्रकारों के एक समूह से कहा गया था कि पहले उन्हें मुसमलान करो. दरअसल बांग्लादेश युद्ध में बलात्कार की शिकार लोगों का एक बड़ा हिस्सा हिंदू समुदाय से था. यहां तक कि मुस्लिम महिलाओं को खालिद बिन वालिद की सत्ता में भी नहीं बख्शा गया था.

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