September 22, 2024

बीसीआर न्यूज़ (कानपूर/तारिक़ आज़मी): कानपूर शहर को पत्रकारिता के लिए कब्रगाह कहा जाता रहा है।लोग मज़ाक में कहते है कि कानपूर चले जाओ पत्रकार बनने के लिए। इसका कारण यह नहीं है कि कानपूर के सिर्फ माफिया पत्रकारो का उत्पीड़न करते है। कानपूर में वास्तव में देखा जाये तो कुछ मुट्ठीभर के स्वयंभू पत्रकार ही पत्रकारो का उत्पीड़न करते है। कानपूर के सम्बंधित पत्रकारो के फेसबुक अथवा कई सोशल मीडिया पर ऐसे फ़ोटो की भरमार है जो कानपूर के इन स्वयंभू लोगो ने पत्रकारो को फर्जी करार देकर मारा पीटा है। आइये कानपूर के वर्त्तमान पुलिस कप्तान साहेब के एक फरमान की कुछ विवेचना आज की जाती है। शायद रात के इस 2 बजे मुझे इस विवेचना की आवश्यकता न पड़ती अगर कप्तान साहेब का अपना खुद का निर्णय सही होता तो। आइये जब रात काली ही होनी है तो कर डालते है विवेचना।
कानपूर में कथित रूप से जा रहा एक युवक को वहा खड़े पुलिस कर्मियो ने रोक तो उसने खुद को पत्रकार बताया और जाने लगा इसपर पुलिस वालो ने पुलिस की कहानी के अनुसार गहन छानबीन की तो वो एक लूटेरा निकला और उसके 2 साथी होम गार्ड के जवान निकले। फिर क्या था पुलिस कप्तान साहेब ने मौखिक एक आदेश पारित कर डाला कि अब प्रेस लिखे वाहनों की चेकिंग होगी और उसमे कानपूर के एक पत्रकारो का संगठन का सहयोग लिया जायेगा। अर्थात यह हुवा की अब वो पत्रकारो का संगठन किसी को पत्रकार होने या न होने का प्रमाणपत्र जारी करेगा। कप्तान साहेब के इस मौखिक आदेश को तत्काल वहा बैठे उनकी जी हुजूरी में खड़े कुछ मीडिया कर्मियो ने प्रमुखता से अपने समाचार पत्रो में लगाया कि अब प्रेस लिखी गाडियो की होगी विशेष छानबीन। कप्तान साहेब के इस आदेश का हम सम्मान करते है और हम भी चाहते है कि रंगे भेड़िये बेनकाब हो और सच के सिपहसालार और कलम के पुजारी को सम्मान से देखा जाये। परंतु कप्तान साहेब कुछ घटनाओ का उल्लेख के साथ कुछ प्रश्न भी है यदि आपका उत्तर मिल जाये तो महती कृपा होगी क्योकि आपकी जीहुजूरी में लगे आपके द्वारा कुछ सम्मानित पत्रकारो का ही कहना है कि आप केवल बड़े बैनर के अखबारो या चैनल को ही जवाब देते है।
कप्तान साहेब जिस घटना के परिपेक्ष में आपने यह मौखिक आदेश जारी किया है जिसका आज से पालन भी आपके अधिनस्तो द्वारा होना शुरू हो गया है उस घटना में 2 होमगार्ड के जवान भी शामिल होना बताया गया है। कई अन्य घटनाओ में भी होमगार्ड के जवान शामिल पूर्व में रहे है। लगभग हर चौराहे पर होने वाली वसूली में आपके होमगार्ड के जवानो का पूरा हाथ क्या हाथ पैर और सर तक होता है। तो क्या आप इनपर भी कार्यवाही करेगे। इनके ईमानदार होने का प्रमाणपत्र कौन निर्गत करेगा ये भी बता देते। या फिर आपने इस विभाग को क्लीन चिट दे दी है की बस यही थे अब सभी ईमानदार है।
किसी भी चौराहे से गुजरने वाले 20 वाहन में से अगर 7 पर प्रेस लिखा होता है तो 8 पर पुलिस लिखा होता है जितने वाहन पुलिस लिखे सड़क पर दौड़ रहे है उतने तो शायद आपके अधिनस्थ पुलिस कर्मी भी नहीं है। फिर उनको कौन प्रमाणपत्र निर्गत करेगा। अब अगर नियमो की बात की जाये तो पुलिस नियमावली के अनुसार आप स्वयं अपने निजी वाहन पर पुलिस का मोनोग्राम नहीं लगा सकते है केवल सरकारी वाहनों पर पुलिस का मोनोग्राम होना चाहिए फिर ये दो पहिया तीन पहिया और चार पहिया वाहनों पर कैसे पुलिस लिखा है और किस नियम के तहत लिखा है।
पत्रकार हेतु एक विभाग जिलाधिकारी महोदय के नेतृत्व में बना हुवा है जिसको ज़िला सूचना कार्यालय कहते है जो पत्रकारो की पूरी लिस्ट रखता है व आरएनआई की अपनी वेब साईट पर बहुत कुछ उपलब्ध है। किसी ब्यूरो प्रमुख को प्रमाणित प्रधान संपादक करता है व पत्रकार कल ब्यूरो प्रमुख प्रमाणित करता है न की कोई प्राइवेट संस्था। तो क्यों नहीं शंका होने पर पहले ब्यूरो प्रमुख और प्रधान संपादक से संपर्क करके उसकी प्रमाणिकता की जाँच की जाये और फिर भी शंका होने पर आरएनआई को ऑनलाइन व फिर भी स्थिति साफ़ न होने पर ज़िला सूचना अधिकारी से संपर्क कर जाँच की जाये। यदि फिर भी आपको लगता है कि आपकी यह प्राइवेट संस्था ही पत्रकार होने का प्रमाणपत्र सही निर्गत कर सकती है तो फिर आप इस अपनी क्रन्तिकारी सोच को समाज के सामने लाये और सरकार को इस सम्बन्ध में अवगत करवाकर सरकार से इस सम्बन्ध में नियम पास करवाये कि पत्रकार होने का संपूर्ण प्रमाणपत्र यह संस्था जारी करे इससे जनता के गाढ़े कमाई का पैसा भी बहुत बच जायेगा और सूचना विभाग को सरकार ख़त्म करके उनको दिलने वाली मोटी सैलरी से कोई अन्य कार्य करके जनता का भला करेगी।
वैसे कप्तान साहेब शैलेश नमक एक युवा पत्रकार पर सच्ची खबर जनता को दिखाने का जुर्म आपके शहर में सिद्ध हुवा और उस पर जान लेवा हमला हुवा इस सम्बन्ध में पुलिस महानिदेशक महोदय ने आरोपियों पर मुकदमा पंजीकृत करने का आदेश फ़रवरी माह में दिया गया। आपकी इसी जी हुजूरी करने वाली संस्था के दबाव में आज तक उस पत्रकार का मुक़दमा नहीं लिखा गया बल्कि उलटे उसी पत्रकार पर झूठा मुक़दमा लिख लिया गया। क्या इस पर भी आप कोई कार्यवाही करेगे। क्या एक बड़े समाचार पत्र के उच्च पद पर बैठे पदाधिकरी पर एक महिला पत्रकार ने शोषण का आरोप लगाया है 19 माह गुज़र चुके है महिला के केस में अभी तक चार्ज शीट नहीं बनी है क्या इस पर कार्यवाही होगी सर
हर चौराहो पर अब जाँच तो पुलिस कर्मियो के साथ इस संस्था के लोग करेगे क्या इस संस्था के उच्चपदस्त पदाधिकरियों की जाँच भी आप द्वारा करवाई जायेगी कि इनमे से कितनो को नियुक्ति पत्र मिला है। इनमे से कितनो पर अपराधिक मुक़दमे विचाराधीन है।
क्या आप वास्तव में सिर्फ बड़े अखबारो के प्रतिनिधियों को ही पत्रकार माना जाता है। क्योकि असली काम के पत्रकार तो वो होते है जिनको ये आपके करीबी पत्रकार न होने का प्रमाणपत्र निर्गत कर देंगे।

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