अजय शास्त्री
संपादक व प्रकाशक- बॉलीवुड सिने रिपोर्टर (समाचार पत्र) व बीसीआर न्यूज़ (वेब न्यूज़ पोर्टल)
बीसीआर न्यूज़/नई दिल्ली: 25 जून, 1975 की रात। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के सामने एक लिखित प्रस्ताव पेश किया जाता है। वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चार लाइन के इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते हैं और अगले दिन से ही देशवासियों के सारे नागरिक अधिकार समाप्त हो जाते हैं। हजारों लोगों की गिरफ्तारियां होती हैं और यातनाओं का दौर शुरू हो जाता है। आज 40 साल बाद देश इसे ‘आपातकाल’ के भयानक दौर के रूप में याद करता है। वह दौर ऐसा था जब गिरफ्तारी से बचने के लिए आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी तक ने सिख वेश धारण कर लिया था। हाल ही में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने आपातकाल की आशंका जताकर उन दिनों की भयावह यादें ताजा कर दी हैं। साथ ही, जिन्होंने उस समय को नहीं देखा उनके मन में जिज्ञासा पैदा हो गई है। आपातकाल को कोई आजाद भारत के इतिहास का सबसे अलोकतांत्रिक कालखंड मानता है तो कोई इसे जायज ठहराता है। आज वे सारे प्रश्न उठ खड़े होते हैं, जिनके जवाब इन हालातों पर रोशनी डालते हैं। आपातकाल क्यों लगा? किसने लगाया? उन दिनों क्या हुआ था? ऐसे कई सवालों के जवाब जानना जरूरी है।
इन कारणों से बने इमरजेंसी के हालात ?
- जब 1971 में रायबरेली लोकसभा सीट से राजनारायण इंदिरा गांधी से चुनाव हार गए तो उन्होंने इलाहबाद हाईकोर्ट में केस किया कि इंदिरा गलत तरह से चुनाव जीती हैं। अंतत: जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून, 1975 को इंदिरा को दोषी पाया और चुनाव रद्द कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और जस्टिस वी आर कृष्ण अय्यर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे तो लगाया, लेकिन आंशिक तौर पर। 24 जून 1975 के अपने फैसले में जस्टिस अय्यर ने इंदिरा गांधी को बतौर प्रधानमंत्री संसद में आने की इजाजत तो दी, लेकिन बतौर लोकसभा सदस्य वोट करने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस फैसले से नाराज इंदिरा ने कैबिनेट की औपचारिक बैठक बुलाई और अगले दिन राष्ट्रपति से आपातकाल की अनुशंसा कर दी।
- गुजरात के इंजीनियरिंग कॉलेजेज में मेस की फीस बढ़ने के विरोध से शुरू हुआ जयप्रकाश नारायण का आंदोलन इंदिरा की मुसीबत बन गया था। जेपी के आंदोलन से तमाम विपक्षी दल भी जुड़ गए। जार्ज फर्नांडीस ने अप्रैल 1974 में रेलवे हड़ताल तक करा दी। जिसे इंदिरा ने ‘डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट’ का सहारा लेकर तीन हफ्ते में ही बंद करा दिया। इससे और आग भड़की। अंतत: अराजकता का हवाला देकर इंदिरा ने आपातकाल जरूरी बता दिया।
जिसने लिखी आपातकाल की पटकथा
25, जून 1975 के दिन दोपहर के साढ़े तीन बजे थे। इंदिरा गांधी के दिमाग में दूर-दूर तक यह ख्याल नहीं था कि कोई आंतरिक आपातकाल जैसी स्थिति भी होती है। जेपी के आंदोलनों से परेशान इंदिरा ने अपने विश्वसनीय और प. बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थशंकर रे से कहा कि वे उन्हें संविधान की कोई कमजोर कड़ी बताएं। रे ने घंटों तक संविधान के पन्ने पलटे। अंतत: उन्हें वह तोड़ मिल गया, जो इंदिरा चाहती थीं। आर्टिकल 152। उसी शाम इंदिरा और रे राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे। इधर, इंदिरा राष्ट्रपति के दस्तखत ले रही थीं और उधर गिरफ्तारी के लिए विपक्ष के नेताओं की सूची बन रही थी। दूसरे दिन यानी 26 जून, 1975 को इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो पर आपातकाल की घोषणा कर दी।