November 16, 2024
Anuvrat-1

अणुव्रत पुरस्कार से सम्मानित श्री सीताशरण शर्मा महान समाजसेवी थे* उनका संक्षिप्त जीवन परिचय इस प्रकार से है

जन्म : 26 मार्च 1931
जन्म स्थान : सामहो ग्राम
बेगूसराय-बिहार
शिक्षा : प्राथमिक
निधन : 5 जुलाई 2001
बीसीआर न्यूज (अजयशास्त्री/दिल्ली): बिहार के ब्राह्मण परिवार में श्री सीताशरण शर्मा का जन्म हुआ। गंगा में आई बाढ ने सामहो ग्राम को बहा दिया। पूरा गांव एवं ग्रामवासी बेघर एवं खेती विहिन हो चले। गांव पुनः बसा तो शर्मा परिवार गंगा नदी के दूसरे किनारे मुंगेर जिले में जा बसा। शिक्षा की कमी और घर को चलाने की समस्या थी। धनबाद में कुछ समय नौकरी की। 1955 के आसपास आचार्य विनोबा भावे की शरण में जाकर भूदान आंदोलन में सक्रिय हुए। बाबा के आग्रह पर शर्मा जी उनके ड्राइवर बने और बाबा के साथ रह कर गीता- रामायण के संदेशों को आत्मसात कर ज्ञान प्राप्त किया। बाबा की सेवा में शर्मा जी ने स्वयं को पूर्ण रूप से अर्पित कर दिया और वही उनकी शिक्षा दीक्षा हुई।
1964 में बाबा के निर्देशानुसार बेंगलुरु पहुंचे और बेंगलुरू स्थित बल्लभ निकेतन आश्रम के संचालन के साथ ही श्री शर्मा स्थानीय सामाजिक, शैक्षिक एवं धार्मिक संस्थाओं से जुड़े और अपनी राज्यव्यापी पहचान बनाई।* राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा संस्थापित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से सदस्य के रूप में जुड़े*, धीरे धीरे उसके संरक्षक, ट्रस्टी, मंत्री पद पर पहुंचे और दक्षिण में हिंदी में व्यापक प्रचार प्रसार में सहभागिता निभाई।
तेरापंथ प्रवक्ता मोतीलाल एच. रांका के संपर्क से शर्माजी अणुव्रत आंदोलन से जुड़े और आचार्य तुलसी के नजदीक पहुंचे। आचार्य तुलसी की दक्षिण यात्रा में शर्मा जी का प्रमुख योगदान रहा। 1969 में बैंगलोर में संपन्न आचार्य तुलसी का चातुर्मास वल्लभ निकेतन में हुआ। यह प्रथम चातुर्मास था जो अणुव्रत के बैनर पर कर्नाटक अणुव्रत समिति के तत्वाधान में हुआ। आचार्य तुलसी अमृत महोत्सव पर आयोजित *अमृत कलश पदयात्रा में आप पदयात्री बने और मेवाड़ अंचल को अपने पैरों से नापा। श्री शर्मा अणुव्रत महासमिति की कार्यसमिति के सदस्य, पदाधिकारी रहे एवं 1997 में महासमिति के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।सन 2000 में अणुव्रत महासमिति के पुनः अध्यक्ष निर्वाचित हुए। दक्षिण में अणुव्रत के विचार को प्रसारित करने में श्री शर्मा ने अपनी पूरी शक्ति लगाई और सर्वोदय के शीर्षस्थ नेताओं को आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ के निकट लाने का प्रयास किया। 5 जुलाई 2001 को हृदयाघात से श्री शर्मा का यकायक निधन हो गया। उन्हें मरणोपरांत अणुव्रत पुरस्कार 1999 से सम्मानित किया गया।

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