November 15, 2024
Reeta Wiswakarma
बीसीआर न्यूज़ || यदि किसी से भी यह पूँछा जाए कि अक्ल बड़ी या भैंस तो वह झट से उत्तर देगा कि ‘अक्ल’, लेकिन यदि उसी से यह प्रश्न किया जाए कि जिले में कौन सा सरकारी मुलाजिम बड़ा होता है मसलन-कलेक्टर (डी.एम.) या बिजली महकमें का अधिकारी- तब इस प्रश्न का उत्तर दे पाने में उन्हें दिक्कतें पेश आएँगी। कहने के लिए कलेक्टर यानी जिलाधिकारी- जिला मजिस्ट्रेट जिले का सर्वोच्च अधिकारी होता है, लेकिन वह भी बिजली महकमें के आगे ‘लाचार’ सा होकर रह जाता है। किसी एक जिले की बात नहीं है ऐसा उत्तर प्रदेश सूबे के लगभग सभी जिलों में है, जहाँ ‘हाकिम’ का रौब सभी महकमें पर चलता है, लेकिन बिजली विभाग पर यह अस्त्र कामयाब नहीं है।

बिजली समस्या की बात चल ही रही थी इसी बीच मुझे मेरे सीनियर ने बताया कि डेढ़ दशक पहले यहाँ एक कलेक्टर थे बड़े ही सुलझे और मूडी टाइप के। विद्युत समस्या से आजिज जनपद वासियों की प्रॉब्लम को वह बेहतर समझते थे। उनसे उनकी प्रगाढ़ता होने की वजह से प्रायः बैठकें होती थीं। प्रत्येक कार्य दिवस में दोपहर की चाय उक्त डी.एम और मेरे सीनियर एक साथ पीया करते थे। उन्होंने बताया कि डी.एम ने उनसे कहा था कि जितनी देर उनके बंगले पर बिजली रहेगी, उसी के अनुसार ही जिले के वासिन्दों को आपूर्ति कराने का प्रयास करूँगा। ठीक वैसा ही किया था उन्होंने। उनके जाने के बाद डेढ़ दर्जन कलेक्टर आए और चले गए होंगे लेकिन किसी में वैसा कुछ भी नहीं दिखा जैसा डी.एम. आर.पी. शुक्ल (आई.ए.एस.) में था। अब तो जिले के हाकिमों की कार्य प्रणाली देखकर ऐसा सुस्पष्ट होता है कि वह लोग सत्तारूढ़ पार्टी के विशुद्ध/खाँटी एजेन्ट हैं।
बिजली समस्या से आजिज कई लोगों के आग्रह पर मैंने महकमें के ट्रान्समिशन अभियन्ता से पूँछा था तो उत्तर मिला कि शक्तिभवन/पनकी कन्ट्रोल यहाँ की पावर सप्लाई रोस्टर/सेड्यूल तभी चेन्ज करेगा, जब कोई कद्दावर लीडर अथवा सी.एम. चाहें। विद्युत विभाग के किसी अधिकारी में साहस नहीं है कि वह पावर सप्लाई सेड्यूल के बारे में पनकी कन्ट्रोल/शक्तिभवन में बैठे उच्चाधिकारियों से कह सके। यहाँ तक कि जिले का कलेक्टर भी शक्तिभवन/पनकी कन्ट्रोल के आगे बौना है। उस अभियन्ता की बात हमारे यहाँ के परिप्रेक्ष्य में एकदम शत-प्रतिशत सही साबित हो रही है।
माननीय और कलेक्टर सूबे की सरकार के हुकुमबरदार से बने हैं, यदि जिले के अवाम की प्रॉब्लम से अवगत कराने की गलती कर दिए तो उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। कलेक्ट्रेट से लेकर सभी सरकारी कार्यालयों में जेनरेटर्स की सुविधा है, जाड़ा, गर्मी, बरसात सभी मौसम में सरकारी मुलाजिमों के ऊपर कोई असर नहीं पड़ता, चाहे ए.सी./कूलर चलाएँ या फिर रूम हीटर/ब्लोअर। पब्लिक का पैसा है, चाहे सरकार खर्च करे या सरकारी मुलाजिम। आम आदमी ही समस्या ग्रस्त होकर चिल्ल-पों करता है। ऐसा करके क्या करेगा, रिजल्ट ढाक के तीन पात ही आएगा। क्योंकि यही तो असली परजातन्तर है।
मेरे सीनियर के एक सम्पादक मित्र ने उन्हें बताया कि बनारस (वाराणसी) में मोदी जी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण अब पावर क्राइसिस समाप्त हो गई है। वहाँ के लोग सुकून से जीने लगे हैं। साथ ही पी.एम. नरेन्द्र मोदी का गुणगान भी कर रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसा दिल्ली के लोग सी.एम. केजरीवाल का शुक्रिया अदा कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश का हाल तो बिजली ने बेहाल करके रखा हुआ है। सी.एम. के घर-घराने की नुमाइन्दगी वाले जिलों को छोड़कर शेष अन्य की हालत खराब है। प्रदेश के जनपद अम्बेडकरनगर के जिला मुख्यालयी शहर अकबरपुर व शहजादपुर में मेन सप्लाई 17 घण्टे ही की जाती है। अकबरपुर विद्युत वितरण खण्ड के अधिशाषी अभियन्ता द्वारा हर सम्भव प्रयास करके इससे जुड़े क्षेत्रों में रोस्टर अनुसार विद्युत आपूर्ति कराई जाती है।
अकबरपुर का विद्युत उपकेन्द्र जर्जरावस्था में है, जहाँ लगे विद्युत उपकरण और भवन जीर्ण-शीर्ण हो गये हैं। जरा सी हवा चली नहीं या बादल गरजा नहीं कि बिजली सप्लाई ठप्प। अकबरपुर/शहजादपुर उपनगरों में कब कहाँ, किस पर बिजली के जर्जर तार टूटकर गिर जाएँ और खम्भे गिर पड़े कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसी स्थिति में जानलेवा हादसे होना आम बात है। इस तरह की घटना पूर्व में कई बार पेश भी आ चुकी है। ठीक यही हाल उपकेन्द्र के जर्जर भवनों (अधिशाषी अभियन्ता आवास और विद्युत वितरण खण्ड कार्यालय एवं विद्युत कर्मियों की रिहायशी कालोनी) का भी है। कब कौन सी छत भरभराकर गिर पड़े कहना मुश्किल है।
जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त विद्युत उपकेन्द्र एवं विद्युत पोल, तार, ट्रान्सफार्मर व अन्य उपकरणों से यहाँ के अधिशाषी अभियन्ता मुकेश बाबू एण्ड हिज टीम येन-केन-प्रकारेण बिजली सप्लाई देने का प्रयास कर रही है। अकबरपुर विद्युत उपकेन्द्र से वी.आई.पी. पटेलनगर और कम्पोजिट मेन फीडर्स में सप्लाई की जाती है, जिसमें कम्पोजिट मेन में लोड अधिक होने से प्रायः ट्रान्सफार्मर फुंकने, तारों के टूटकर गिरने के कारण ‘लोकल फाल्ट्स’ से मेन पावर सप्लाई अवधि में 2 से 3 घण्टे विद्युत आपूर्ति बाधित हो जाया करती है।
ऐसा नहीं है कि अकबरपुर विद्युत वितरण खण्ड के अधिशाषी अभियन्ता मुकेश बाबू हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं, विभागीय उच्चाधिकारियों को यहाँ आने वाली दिक्कतों से वह बराबर अवगत कराते रहते हैं, लेकिन ‘शक्तिभवन’ लखनऊ पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। अम्बेडकरनगर जिले की पाँचों विधान सभा सीटों पर सपा का कब्जा है। दो कैबिनेट और एक राज्यमंत्री भी इसी जिले से हैं, लेकिन वह लोग क्या कर रहे हैं यह किसी के समझ में नहीं आ रहा है? कलेक्टर (डी.एम.) क्या करे? जाहिर सी बात है जब यहाँ के जनप्रतिनिधि ही कुछ नहीं कर रहे हैं तब इस समस्या का समाधान कैसे सम्भव है?
उल्लेखनीय है कि सूबे की सरकार एवं विद्युत विभाग के आदेशों का सख्ती एवं ईमानदारी से अनुपालन कराने वाले अकबरपुर विद्युत वितरण खण्ड के अधिशाषी अभियन्ता मुकेश बाबू अपने कार्यकाल में विद्युत चोरी, विद्युत कर चोरी पर अंकुश लगाने में सफल रहे हैं साथ ही राजस्व वसूली में भी इन्होंने कीर्तिमान बनाया है। हर आम और खास की समस्याओं को गम्भीरता से लेते हुए उसका यथा सम्भव निराकरण भी कराते रहे हैं। इन सबके बावजूद विभाग और सरकार अकबरपुर स्थित विद्युत उपकेन्द्र की बदहाली की तरफ ध्यान नहीं दे रही है। यह प्रश्न अवश्य ही शोचनीय है।
कहने का लब्बो-लुआब यह है कि जनप्रतिनिधि और हाकिम सभी अपने-अपने ओहदे को बचाने के लिए कुछ भी ऐसा-वैसा करने से कतरा रहे हैं जिससे सूबे की सरकार के मुखिया उनसे नाराज हों। प्रॉब्लम जनता की है तो वह उससे दो-चार हो रही है, अधिक से अधिक चिल्ल-पों होगा, इससे क्या फर्क पड़ने वाला है। जैसा चल रहा है चलने दो- ऐसी अवधारणा वाली सरकार के बारे में क्या कहा जाए…?

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