बीसीआर न्यूज़ (अजय शास्त्री/नई दिल्ली): “सर्वोत्तम तकनीकी व प्रबंधन संस्थान” ने हाल में एक संगोष्ठी का आयोजन किया था जिसकी मुख्यधारा ‘राष्ट्र निर्माण में युवाओं के लिए समग्र विकास के महत्व’ को समझाना था। इस कार्यक्रम की शुरूआत परंपरागत रूप से दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना के साथ हुई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ‘डॉ. अनुज’ द्वारा लिखित जीवंत उपन्यास ‘दैट ऐरोटिक साइलेंस’ का भव्य विमोचन हुआ।
यह कार्यक्रम नोएडा स्थित “सर्वोत्तम तकनीकी व प्रबंधन संस्थान” में हुआ, जिसका पूरा श्रेय वहां के मुख्य निदेशक ‘जमील अहमद’ को जाता है। संस्थान के बहुत बड़े प्रांगण के मध्य बसा हुआ यहां का सभागार, मानो उस पल का गवाह बनने को आतुर हो जहां राष्ट्र-निर्माण के लिये बड़ी मात्रा में ‘समग्र विकास के पुरोधा’ मौजूद थे।
इस कार्यक्रम के दो मुख्य उद्देश्य थे, पहला: ‘युवाओं के समक्ष ‘राष्ट्र निर्माण में समग्र विकास के महत्व’ को इंगित करते हुए एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया और दूसरा; समग्र विकास के योद्धा (जो विभिन्न क्षेत्रों से आकर समाज में एक नई ऊर्जा का संचार करते हैं तथा समाज को एक नया आकार देने के लिए कटिबद्ध होते है) को ‘सर्वोत्तम एक्सीलेंस अवार्ड’ के सम्मान से नवाजा जाना था।
सभागार के अंदर छात्रों ने पूरी अनुशासन के साथ बड़े ही चाव से सारे गणमान्यों को सुन रहे थे। कार्यक्रम की रूपरेखा डॉ. अर्पिता व बिपिन शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार, सलाहकार संपादक) ने तैयार कर रखी था। संस्थान के सभी अध्यापक अपनी-अपनी जिम्मेदारी के साथ वहां मौजूद थे। कार्यक्रम की भूमिका बांधने ‘जमील अहमद’ मंच पर आए, उनके आते ही मानो सभी छात्रों में उत्साह का संचार हो गया हो।
जमील अहमद ने अपने वक्तव्य में कहा कि “21वीं सदी में लोगों को सकारात्मक स्वास्थ्य, निवारण और बिमारियों का पूर्वानुमान पर ज़ोर देना चाहिए और मानवीय प्रणाली के तीन संचालक अर्थात् : मस्तिष्क, शरीर व आत्मा में आपसी तालमेल का होना अनिवार्य है। आज के समय में ज़िंदगी काफी तनावग्रस्त हो चुकी है, चूंकि सुबह से शाम तक की भागदौड़ से लोगों की दैनिक दिनचर्या प्रभावित हो रही है। अगर आप किसी विशेषज्ञ से पूछो तो वह अस्थाई समाधान देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए दिखते हैं। रोगों के स्थाई इलाज के लिए बुनियादी स्वास्थ्य व्यवस्था को शामिल करना अति आवश्यक है जैसे: प्रात: और संध्या में सैर, पानी का अत्यधिक सेवन और जैविक खाद्य पदार्थों का सेवन। यह तभी संभव है जब आप और हम सुविधाजनक जीवनशैली को त्याग दें। सुबह-शाम सैर की आदत कभी बीमार नहीं होने दे सकती।
इसी ज्वलंत मुद्दे को विस्तार से बताने के लिए ‘डॉ. अनुज’ को मंच पर आमंत्रित किया गया, जिसका सभी इंतज़ार कर रहे थे। जैसे ही डॉ. अनुज मंच पर उपस्थित हुए वैसे ही तालियों की गड़गड़ाहट से पूरी सभागार गुंजायमान हो गया। माहौल ऐसा प्रतीत हुआ मानो एक कुशल वक्ता को आदर्श श्रोता मिल गए हों। समग्र विकास के द्योतक डॉ. अनुज (सूक्ष्म शल्य चिकित्सक व लेखक) ने अपने भाषण से ‘राष्ट्र-निर्माण में समग्र विकास के योगदान’ को बड़ी ही बारीकि से समझाया साथ ही इस पहल में युवाओं की भूमिका को भी चिन्हित किया। ‘समग्र विकास’ के लिए डॉ. अनुज ने सबसे बड़े विकल्प के तौर पर ‘स्वास्थ्य’ को चुना जो वाकई में हमारे देश के लिए बहुत बड़ा संकट है। उन्होंने अपने पूरे जीवन में घटित कुछ संवेदनशील तज़ुर्बों को हम सभी से अवगत कराया। इसके साथ ही, उन्होंने शिक्षा और रुचि गत क्रियाकलापों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के तौर तरीके भी बताए। उनकी एक-एक बातें श्रोताओं के मन को छलनी कर रहा था लेकिन दूसरी तरफ उनकी बातें लोगों को प्रेरित भी कर रही थी। फिर उसके बाद डॉ. अनुज ने अपनी लिखित उपन्यास “दैट ऐरोटिक साइलेंस” के बारे में संक्षिप्त व्याख्या दी कि, वास्तव में वह किन परिस्थितियों में इस उपन्यास की रचना की? उन्होंने बताया कि ” इस किताब में एक तीन वर्षीय अबोध बालक को चारित्रिक रूप से पेश किया गया है, जिसमें उस बच्चे के बाल्यावस्था से लेकर किशोरावस्था तक के सफ़र का वर्णन किया गया है। उस सफ़र में उस बच्चे ने समाज से जो कुछ अनुभव प्राप्त किया उसका प्रभाव उसके मस्तिष्क पर किशोरावस्था में पड़ा, जिससे वह सच्चे प्रेम के पीछे के सच से अवगत हुआ। डॉ. अनुज ने यहाँ भी अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए एक बहुत सुंदर गीत गुनगुनाया, जिसको सुनने के बाद वहां मौजूद सभी के पांव धीमी गति से थिरकने को मज़बूर हो गए। वक़्त की नजाकत को देखते हुए डॉ. अनुज ने अपनी बात को वहीं विराम देकर मंच से नीचे आ गए।
संबोधन के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए मंच संचालिका ने एक ऐसी व्यक्तित्व को मंच पर आमंत्रित किया जो ख़ुद में पूरी संस्थान हैं। ‘उषा ठाकुर (वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता) जिनका अतीत ही इतना गौरवपूर्ण है कि उनके समक्ष पहुंचते ही सकारात्मक तरंगों की अनुभूति होने लगती है। राष्ट्रकवि “रामधारी सिंह ‘दिनकर'” की दोभित्री ‘उषा ठाकुर’ ने अपने मुखारबिन्द से अपने ही नाना की लिखी कुछ पंक्तियां सुनाया जो युवाओं में पुन: जोश भरने के लिए काफी था।
संबोधन की अगली कड़ी में नाम आया एक ऐसे शख्स की जो देखने में बिल्कुल ही सीधे सादे थे, लेकिन उनकी व्यंग्यात्मक टिप्पणी ने पूरे सभागार में उपस्थित सभी के चेहरों से सिकन को हटाकर मुस्कान बिखेर दी। दयानंद वत्स ने अपने प्रतिभावान व हास्यपूर्ण भाषण से वहां उपस्थित भीड़ को बहुत ही प्रभावित किया और हर ज्वलंत मुद्दों पर उनके नज़रिए का सभी ने समर्थन किया, तालियों की गर्जना इस बात की साक्षी थी।
एक वरिष्ठ पत्रकार और कुशल वक्ता, दयानंद वत्स ने डॉ. अनुज की लिखी कवितावली संग्रह ‘भावरंजिनी’ के कुछ पंक्तियां गुनगुनाए, और बड़े ही सरलता से लोगों तक ‘समग्र विकास’ के पहलुओं को रखा। उनकी बातों पर तालियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।
संबोधन का दौर ख़त्म होते ही अब वो वक़्त आ चुका था जिसका हर किसी को इंतज़ार था। राष्ट्र-निर्माण में सराहनीय व प्रशंसनीय भूमिका निभाने वाले चुनिंदा लोगों को कार्यक्रम के दौरान मुख्य निदेशक जमील अहमद ने “सर्वोत्तम एक्सीलेंस अवार्ड” से नवाजा।